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________________ 2006 “सांच को आंच नहीं” (0902 ही सम्मत हैं इतना ही क्यों पर यह प्रथा लोक विरुद्ध भी है इस कुलिंग की स्थान स्थान निंदा और अवहेलना होती है जैन धर्म की निंदा और हँसी करवाई है तो ऐसे कुलिंग धारियों ने ही करवाई है इन लोगों के लिये हमें दया आती है शासन देव इनको सद्बुद्धि प्रदान करे इनके अलावा और क्या किया जाय। - इस नाभानरेश व पण्डितों के फैसले से पाठकवर्ग और विशेषकर हमारे स्थानकवासी भाई ठीक तौर पर समझ गये होंगे कि जैनशास्त्रों व अन्यधर्म के ग्रन्थों के आधार पर दिया हुआ फैसला साफ-साफ पुकार रहा है कि जैन मुनियों के मुखवस्त्रिका का सनातन से हाथ में और बोलते समय मुँह आगे रखना ही विधान है। हारा जुआरी दुगुनाखेले एसे फैसलों से और एतिहासिक साधनों से इन कल्पितमत (स्थानकवासी) की चारों और पोल खुलने लगी और समझदार भव भीरू स्थानकवासी साधु एक के पीछे एक मुँहपती का मिथ्या डोरा तोड़ कर मूर्तिपूजा के उपासक बनने लगे। इस हालत में स्थानकवासियों के पास दूसरा कोई उपाय न रहा जिस से रहे हुए अबोध लोगों को कुछ भी आश्वासन देकर उन के चलचितको स्थिर कर सके । फिर भी यह करना इन लोगों के लिए जरूरी था अतएव हाल में ही इन लोगोंने ‘पीतांबर पराजय' नामक एक छोटा सा ट्रेक्ट छपवाया, जिस में बिलकुल कल्पित और असभ्य शब्दों में आप अपनी जय और जैन मुनियों का पराजय होने का मिथ्या प्रयत्न किया है । पर अब जनता एवं विशेसे स्थानकवासी समाज इतना अज्ञानन्धकार में नहीं है कि नाभा-नरेश की सभा के पण्डितों के हस्ताक्षर से दिया हुआ फैसला और खास नाभानरेश के साथ पत्र व्यवहार द्वारा महाराज नाभानरेश ने अपनी सभा के पण्डितों द्वारा दिया हुआ न्यायपूर्वक फैसला छपाने की इजाजत दें । उस फैसला को असत्य समझे और स्थानकवासी कई मताग्रही लोगों की कल्पित एवं बिलकुल झूठी बातों को सत्य समझ ले ? यदि स्थानकवासी भाई जैनमुनियों की पराजय और अपनी जय होना घोषित करते हैं तो उनको 38
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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