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________________ -G006 “सांच को आंच नहीं" (0902 कहना चाहिये कि नाभानरेश की सभा के किसी पण्डित का दिया हुआ फैसला कि एक लाइन तक भी जनता के सामने रखे । यदि आपका यह कहना हो कि मध्यस्थ पण्डितों के अन्दर से सब के सब नहीं किन्तु कुछ पण्डितों ने फैसला दिया है परन्तु आप उन मध्यस्थ पण्डितों से किसी एक का . तो इस फैसला के विषय में विरोध हो तो उनके हस्ताक्षर ले जाहिर करें वरना अब थोथी बातों और मिथ्या लेखों से जनता को भ्रम में डाल देने का जमाना नहीं है कि नाभा नरेश की सभा के नियत किये हुए मध्यस्थ पण्डित उभय तरफ की दलीलें सुन निर्पक्ष भावों से फैसला दें और उस फैसला को छपवाने की खास नाभा नरेश अपनी अनुमति दें उसको तो जनता असत्य समझ ले और प्रमाण शून्य मनः कल्पित बिलकुल झूठी बातें पर सहसा दुनिया विश्वास करले ? इससे तो ऐसी रद्दी पुस्तकें प्रकाशित करवाने वालों की उल्टी हँसी होती है फिर भी “हारा जुआरी दूगना खेले” इसी युक्ति को हमारे स्थानकवासी कई मताग्राही लोग ठीक चरितार्थ कर रहे हैं तथापि इस सत्यता के युग में सदैव सत्य की ही जय हो रही है। ॥ मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास ॥ (पृ. ४१२ से पृ. ४१२) "मंदिर-मूर्ति संबंधी प्रमाण" की समीक्षा लेखक श्री को इस प्रकरण में वास्तविक रीति से मंदिर - मूर्ति के विरोधी आगम प्रमाण देने चाहिये थे, परंतु आगम में कहीं पर भी एक शब्द • भी मंदिर - मूर्ति विरोधी नहीं मिलने पर हिंसा-हिंसा का शोर मचाते है। अहिंसा संबंधि अनेक आगम पाठ दिये उसका तो कौन निषेध करता है ? परंतु क्या पूरे स्थानकवासी समाज में एक भी साधु ऐसा है, जिसके साधु-जीवन में अंश मात्र भी हिंसा नहीं हुई हो ? यह शक्य ही नहीं है। गमनागमन - नदी उतरना आदि क्रिया होने पर भी, उनमें हिंसा होने पर भी उन क्रियाओं को आवश्यक मानकर उनसे पापबंध नहीं होता, ऐसा लेखक खुद ही पृ. १२ पर लिख रहे है । इसलिए हिंसा-अहिंसा को सूक्ष्म दृष्टि से समझनी आवश्यक है । उनके स्वरुप-हेतु अनुबंध ये तीन भेद है । - 390
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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