________________
-60 “सांच को आंच नहीं” (0902 या और जगह भी छपवाया जा सकता है । आशा है कि इसका जवाब बहुत जल्द मिले । ता. १८-१-१९०६, द० वल्लभविजय जैन साधु ।।
पूर्वोक्त पत्र के उत्तर में नाभा नरेश ने पण्डितों के नाम पत्र लिखा, उसकी नकल नीचे मुजब है :
ब्रहामूर्त पण्डित साहिबान कमेटी सलामत नम्बर ११९३.
इन्दुल गुजारिश पेशगाह खास से इरशाद सायर पाया कि बाबा जी को इत्तला दी जावे कि जहां उनकी मनशा हो वहां इसको तबअ करावे, यह उन को अखतियार है, जो कुछ पंडतान ने बतलाया वह भेजा गया है, लिहाजा मुतकल्लिफ खिदमत हूँ कि आप बमनशा हुक्म तामील फर्मावं, १० माघ संवत् १९६२ आप सरिशतह ड्योढी पन्नालाल, सरिशतहदार।
इस पत्र के उत्तर में कमेटी पंडितान ने श्रीमुनि वल्लभविजयजी के नाम पत्र लिखा, उसकी नकल यह है - "ब्रहा स्वरूप बाबा साहिबजी श्रीमहात्मावल्लभविजयजी साहिब साधु सलामत. नं. ७७६” .
सरकार बाला दाम हश्मतहू से चिट्ठी आपकी पेश होकर बदीं जवाब बतवस्सुल ड्योढी मुबारिक व हवालह हुक्म खास बदी इरशाद सदूर हुआ कि बाबाजी को इतला दी जावे कि जहाँ उनका मनशा हो तबअ करावें, बखिदमद महात्माजी नमस्कार दस्त बस्तह होकर इल्तिमास किया जाता है कि जहाँ आपका मनशा हो छपवाया जावे, और जो फैसला तनाजअ बाहमी साधुआन् महात्मा का जो जैनमत के अनुसार पण्डितान ने किया था, आपके पास पहुँच चुका है मुतलअ हो चुका है, तहरीर ११ माघ संवत् १९६२ द० संपूर्णसिंह अज सरिशहत कमेटी पण्डितान ॥
जिस प्रकार नाभा का फैसला हुआ और इसमें स्थानकवासियों का पराजय हुआ था इसी प्रकार पटियाला इलाका के समाना शहर में भी शास्त्रार्थ हुआ उस में भी स्थानकवासियों का ही पराजय हुआ था और बात भी ठीक है कि जिन लोगों ने जैन-शास्त्र विरुद्ध आचरण की है उन लोगों का पराजय होता ही है क्योंकि डोराडाल दिनभर मुँहपत्ती बांधने में न तो जैनशास्त्र सहमत है न परधर्म के शास्त्र । और न ऐतिहासिक साधनों के प्रमाण
37