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________________ -G900 सांच को आंच नहीं" (09602 से एक हमें बड़ा भारी लाभ हुवा है कि हमें मालूम हो गया कि जैन मत में भी सूतक पातक ग्रहण किया है और जैनी साधुओं को उन के घरों के आहारादि के लेने की विधि नहीं है। ___व्यतीत संवत्सर के जेष्ठ सुदी पञ्चमी सं. १९६१ को जो शास्त्रार्थ मध्य में छोड़ा गया जिसका यह आशय था कि ढूंढियों की ओर से सदा मुख बन्धन की विधि का कोई प्रमाण मिले सो आज दिन तक कोई उत्तर उनकी तरफ से प्रगट नहीं हुआ, अत: उन की मूकता आप के शास्त्रार्थ के विजय की सूचिका है । बस इस विषय में हमारी संमति है और हम व्यवस्था याने फैसला देते हैं कि आप का पक्ष उन की अपेक्षा बलवान् है, आप की विद्या की स्फूर्ति और शुद्ध धर्माचार की निष्टा अतीव श्रेष्ठतर है । प्रायः करके जैन शास्त्र विहित प्रतीत होता है और है। इत्यलम् १८ पौह सं. १९६२ मु. रियासत नाभा । १. पण्डित भैरवदत्त. २. पण्डित श्रीधर राज्य पण्डित नाभा. ३. पण्डित दुर्गादत्त. ४. पण्डित वासुदेव. ५. पण्डित वनमालिदत्त ज्योतिषी. उक्त फैसले के आने पर श्रीमुनि वल्लभविजयजी ने श्रीमान् नाभा नरेश को एक पत्र लिखा, उस की नकल आगे देते हैं। ___ श्रीमान् महाराजा साहिब नाभापतिजी जयवन्ते रहें, और राय-कोट से साधुवल्लभविजय की तरफ से धर्म लाभ वांचना । देवगुरु के प्रताप से यहां सुख शान्ति है, और आप की हमेशा चाहते हैं । समाचार यह है कि आप के पंडितों का भेजा हुआ फैसला पहुँचा, पढ कर दिल को बहुत आनन्द हुआ, न्यायी और धर्मात्मा महाराजों का यही धर्म है, कि सत्य और झूठ का निर्णय करें जैसा कि आपने किया है, कितने ही समय से बहुत लोगों के उदास हुए दिल को आप ने खुश कर दिया, इस बारे में आप को बार बार धन्यवाद है। अब इस फैसले के छपवाने का इरादा है, सो रियासत नाभा में छपवाया जावे 36
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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