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________________ G006 “सांच को आंच नहीं" 0960 तो भी उसके अलावा नहीं बांधना सिद्ध होता है। १३. निशीथ चूर्णि - वार्तालाप में मुँह बांधने की बात भी कोरी गप्प है । पाठ देना चाहिये। १४. एक भी प्रतिक्रमण ग्रंथ में प्रतिक्रमण समय मुहपत्ती बांधने की बात नहीं है । मुहपत्ती पडिलेहण की बात आती है। १५. प्रवचन सारोद्धार में संपातिम जीवों की रक्षा के लिये मुहपत्ती बांधनी नहीं लिखी है, बल्कि बोलते समय जीवरक्षा के लिये मुहपत्ती का उपयोग करना, यह भाव है। ____१६. बुद्धि विजयजी को वृद्ध संत ने उत्तर दिया, वह व्याख्यान के समय मुहपत्ती बांधने की बात है । हमेशा के लिये नहीं । ___ १७. शिवपुराण पाठ का धारण करने का अर्थ बांधना नहीं अपितु बोलते वक्त उसे मुँह पर धारण करना है । जो शिवपुराण के दुसरे पाठ से ही स्पष्ट है। .. - वस्त्रयुक्तं तथा हस्तं, क्षिप्यमाणं मुखे सदा । धर्मेति व्याहरंन्तं, नमस्कृत्य स्थितं हरे॥॥शिवपुराण, ज्ञानसंहिता, २९ वा अध्याय, श्लोक नं. ३११ ॥ इस शिवपुराण के श्लोक में स्पष्ट वस्त्रयुक्त (मुहपत्तीवाले) हाथ को (बोलते समय) मुखपर रखते और धर्मलाभ बोलते, ऐसे जैन साधु का वर्णन किया है । इस प्रकार जैनेतर ग्रंथो से भी मुहपत्ती हाथ में रखने की ही सिद्धि होती है। __इस प्रकार सभी प्रमाणों के परीक्षण से स्पष्ट होता हैं कि लेखकने जो प्रमाण मुहपत्ती बांधने के दिये है वे सभी सारे दिन मुहपत्ती नहीं बांधने की सिद्धि कर रहे है । अत: “प्राचीन पद्धति मुँह पर बांधने की ही थी, यह प्राचीन प्रमाणों सिद्ध होता है" यह लेखक का कथन सरासर मिथ्या सिद्ध होता है । डोरे से मुंहपत्ती बांधना तो शास्त्रों में कहीं पर भी नहीं बताया है। . २००० वर्ष प्राचीन कंकाली टीला (कृष्णर्षि की मूर्ति), ओसियाजी, कुंभारियाजी, आबु, राणकपुर, पालीताणा, सांडेराव, सेवाडी आदि अनेक स्थलों में ५००-७००-१००० वर्ष प्राचीन सभी गुरुमूर्तियां हाथ में मुंहपत्तीवाली - मिलती हैं । एक भी प्राचीन मूर्ति मुँह बंधी नहीं मिलती है । इससे भी - 32
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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