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6000 “सांच को आंच नहीं” (0902
५. सेनसूरिजी ने हितशिक्षा पाठ में कहा है, वह बराबर ही है उससे भी मुह बांधने की सिद्धि नहीं होती है । उन्होंने स्पष्ट स्थानकवासी साधु की वेशभूषा बताकर मुख बांधे ते मुखपत्ती न आवे पुण्य के काम' यानि मुहपत्ती बांधने से पुण्य नही होता है ऐसा कहकर बांधने का निषेध ही किया है।
६. हरिबलमच्छी रास पृ. ७३ के पाठ में भी व्याख्यान के समय मुहपत्ती बांधनी और साधु विधि प्रकाश में प्रतिलेखना करते समय मुहपत्ती बांधनी कहा है। उससे स्पष्ट होता है कि उसके अलावा न बांधे, अगर ऐसा न हो और बंधी हुई हो तो उस समय बांधने की क्यों लिखते ?
८. यतिदिनचर्या में शौचादि समय मुहपत्ती बांधनी, दुर्गंध से नासिका में अर्शादि रोगों से बचने आदि के लिए बतायी है उसे उनकी सामाचारी समझना । वही पर बांधनी, मतलब उसके अलावा हमेशा नहीं बांधना सिद्ध होता है।
९. योगशास्त्र वृत्ति में पढने - प्रश्न पुछते वक्त पुस्तकादि हाथ में होने से मुहपत्ती का उपयोग रखने में दुविधा होने से मुहपत्ती बांधना लिखा है वह भी योग्य है उसके अलावा नहीं बांधना स्वत: सिद्ध होता है। ___ १०. शतपदी में उपदेश देते समय मुहपत्ती बांधना कहा है, वह भी बराबर है पहले प्रवचन शास्त्र के आधार से ही देते थे, हाथ में शास्त्र हो तो मुहपत्ती के उपयोग में दुविधा आने से बांधना कहा है । उसके अलावा नहीं बांधना सिद्ध होता है । वर्तमान में नाजुक कागजवाली ताडपत्तियां, हस्तप्रत शास्त्र हाथो में रखते नहीं है, अत: बांधने की जरुरत नहीं, परंतु केवल बोलते समय मुहपत्तिका उपयोग रखने की जरुरत रहती है।
११. आचार दिनकर में वसति प्रमार्जन और वाचना में मुहपत्ती बांधना लिखा है । वसति प्रमार्जन में धुल आदि नासिका में न जावें इत्यादि सुरक्षा के लिये । वाचना का कारण उपर की तरह । उसके अलावा नहीं बांधना सिद्ध होता है।।
१२. बृहत्कल्प भाष्य का पाठ गणधर व्याख्यान वांचते मुहपत्ती बांधना लिखा है, वह कोरी गप्प है । पाठ देना चाहिये । असत्कल्पना से मान भी ले,
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