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________________ -G006 "सांच को आंच नहीं" 009602 बनावटी पाठ घुसेडने की बात तो कह दी, पर इस कथन पर किसी प्रमाण का उपन्यास नहीं किया । अत: यह कथन भी अरण्यरोदन से अधिक महत्व नहीं रखता, आगमों में बनावटी पाठ घुसेडने और उसमें से सच्चे पाठों को निकालना यह तो भिक्षुत्रितय के घर की रीति परम्परा से चली आ रही है।" (पट्टावली पराग पृ. ४६४) "मुखवस्त्रिका वार्ता" की समीक्षा इस प्रकरण में कोई सार नहीं है । पाठक, मुहपत्ति की अनेक प्रमाणों से विस्तृत सिद्धि के लिये मणिसागरजी म.सा. का. कोटा से प्रकाशित “आगमानुसार मुहपत्ति का निर्णय” ग्रंथ देख लें । लेखक कहते हैं ८००० साधु-साध्वी में एक भी उदाहरण नहीं कि जिसने पूरे दीक्षाकाल में कभी भी खुले मुंह नहीं बोला हो” और उससे ये निर्णय देते हैं कि मुँहपर बांधने का सिद्धांत सही है । उनको अपने निर्णय को बदलना होगा, क्योंकि ऐसे भी अप्रमत्त साधु है जो संपूर्ण दीक्षाकाल में कभी भी खुले मुँह नहीं बोले । अतः मुंहपर बांधने से होते प्रमाद का पोषण और अन्यलिंग के दोष (मुंहपर हमेशा मुहपत्ति बांधना मुनिलिंग नहीं है) से बचना चाहिये । इसमें लेखक ने अनेक गलत प्रमाण दिये है। उनका समाधान यह है (१) हरिभद्रसूरि आवश्यक टीका के नाम से लेखक ने गप्प लगायी है।' ____ आवश्यक टीका में चिह्न के लिये रजोहरण, मुहपत्ती, चोलपट्टक मृत्तक के पास रखने की बात है । चिह्न नहीं करें तो, कोई राजा साधु का मृतक देखकर किसी ने साधु को मारा ऐसी शंका से ग्रामघात कर सकता है । अथवा साधु मरकर व्यंतरादि योनि में जाने पर अन्य लिंगवाले मुनिलिंग रहित अपने मृतक को देखकर मिथ्यात्व दशा प्राप्त कर सकता है । चिह्न को पास में देखकर राजा को कुशंका नहीं होवे और देव को भी 'मैं जैन साधु था' ऐसा खयाल आवे, इसलिए चिह्न स्वरुप मुहपत्ती, रजोहरण पास में रखने की विधि बतायी है । इससे तो मुहपत्ती पास में रखना यही लिंग सिद्ध होता है। पाठ इस प्रकार है : 28
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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