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________________ 4-6000 “सांच को आंच नहीं" (0902 रुढी से सिद्ध होते है, वे ही प्रामाणिक गिने जाते हैं, काल्पनिक अर्थ नहीं । अनेक अर्थ में भी प्रकरण के अनुरुप अर्थ ही ग्रहण किये जाते है । भोजन करते समय सैंधव मांगे तो घोडा लावें, युद्ध में सैंघव मांगे वहाँ नमक ले आवे, वह नहीं चलता है । वैसे ही जैनागमों में चैत्य के अर्थ जिनप्रतिमा - मंदिर अभिप्रेत हैं, वहां उटपटांग ज्ञान-साधु आदि अर्थ करना, अयोग्यता - मताग्रह को सूचित करता है। आगमशैली में ज्ञान के लिये ‘णाण', नाणी - अन्नाणी प्रयोग सेंकडों स्थलों में आये हैं । एक भी स्थल में केवल ज्ञान, अवधिज्ञान आदि के लिये केवल-चेइय, अवधि-चेइय वगैरह प्रयोग दिखायी नहीं देता है । यही सूचित करता है कि शास्त्रकारों को 'चेइय' का 'ज्ञान' अर्थ अभिमत नहीं है। केवल भगवती सूत्र में एक सौ से अधिक स्थल में इसके प्रयोग की सूची के लिये देखिये - 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पृ. २८१ से पृ. २१५ और उसीमें पृ. १६९ से पृ. १७२ 'चैत्य शब्द की चर्चा' । यहाँ पर ज्यादा विस्तार नहीं करते है। _ अनेक जगह पर चैत्य शब्द संबंधी विस्तृत चर्चाएँ भूतकाल में हो चुकी हैं । जिज्ञासु देखें मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास पृ. ६८ से पृ. १२३ पट्टावली पराग पृ. ४५५ 'मूल जैन धर्म अने हालना संप्रदायो' पृ. ११२ (लेखक स्थानकवासी पंडित नगीनदास शेठ । चैत्य शब्द प्रक्षेप के मिथ्या आरोप के लिये देखें इसी पुस्तिका में 'णमोत्थुणं पाठ प्रक्षेप की समीक्षा' प्रकरण । - रायपसेणी सूत्र में बतायी हुई शाश्वती प्रतिमा की चर्चा पीछे कर गये, अभी पिष्टपेषण नहीं करते है । शास्त्रों के मनगढंत, काल्पनिक अर्थ करके संसार वृद्धि करना इनकी परंपरा से चला आ रहा है । वैसे ही जिन का ‘अनेक जाति के देव' अर्थ कर रहे है । लेखक को अरिहंत परमात्मा से कितना द्वेष है ? जहां आगमकारों को 'जिन' से अरिहंत इष्ट है, वहां अन्य जाति के देव अर्थ कर रहे हैं । तीर्थंकर शाश्वत नहीं तो क्या अन्य जाति के देव शाश्वत है ? आगमकार अन्य जाति के देवों का इतना चढाकर वर्णन क्यों करें ? अन्यों 26
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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