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________________ G000 “सांच को आंच नहीं” (0902 हिंदु बौद्ध आदि ग्रंथों के इतिहास से भी उनकी सच्चाई की सिद्धि होती है । ऐसे सभी लेख-शिलालेखों को जाली कहना, सूर्य के सामने धूल उडाने जैसी मूर्खता है। ऐसे ही एक उदयगिरि - खंडगिरि का शिलालेख जिसकी लिपी - भाषा की अनभिज्ञता के कारण विदेशी और भारतीय पुरातत्त्वज्ञों ने १०० साल तक पूर्ण परिश्रम करके १०० साल के बाद सर्वमान्य निर्णय करके निष्कर्ष निकाला कि कलिंग पर आक्रमण करके, मगधेश श्रेणिक महाराजा द्वारा सुवर्णमय आदिनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित की जिसे कालांतर में नंदवंशी राजा मगध ले गया, महाराजा खारवेल ने मगध पर चढाई करके वहाँ के पुष्यमित्र राजा को हराकर वह प्रतिमा वापस लायी।” विस्तृत जानकारी के लिए देखिये - 'मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास' पृ. १२३ से पृ. १२९ ऐसे महाविद्वानों ने मेहनत करके प्रकट किये सत्य का इन्कार करने से वस्तु की सत्यता मिटती नहीं है। __ मूर्तिविरोधी - मूर्तिभंजक मूगलादि आक्रमणों से बचाने के लिये हजारों मूर्तियाँ जमीन में गाढी गई थी, जो अतिप्रसिद्ध है । इसलिए खुदाई में निकल रही है । गाढने और निकालने की कपोल कल्पित कल्पना तभी हो सकती है, जब एक ही व्यक्ति दोनों क्रियाएँ करता हो । ऐसी उम्रवाला कोई व्यक्ति दिखाई नहीं देता है और न तो कोई विश्वभर में घुम-घुम कर अनेक अज्ञातस्थलों में मूर्ति आदि गाढ सकता है। आगे लेखक कल्पसूत्र - महानिशीथ सूत्रों को उटपटांग कहकर उनके ही आधार पर अपने कुमत की सिद्धि करने की चेष्टा कर रहे हैं । यह तो जिस डालपर बैठे उसी को काटने की चेष्टा है, ऐसा मूर्ख के सिवाय और कौन कर सकता है ? . कल्पसूत्र का खुलासा इसी पुस्तिका में अन्यत्र आ गया है । महानिशीथ के पाठ का लेखक ने सरासर झूठा अर्थ किया है। पूर्व के 'संदर्भ को छोडकर लेखक ने जान-बुझकर भोले - अनपढ लोगों को फसाने हेतु मायाचारिता से 'जिनमंदिर सावद्य है ।' ऐसा अर्थ किया हैं । महानिशीथ के पाठ की संक्षिप्त भूमिका इस प्रकार है - अनंत चोवीसी के पूर्व धर्मसीरी 24
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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