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________________ -6000 “सांच को आंच नहीं" (10960 भान भुल जाते है । एक व्यक्ति एक स्थानपर गलत अर्थ करता है तो दुसरे उसी स्थान में प्रक्षेप की कुकल्पना करते है । देखिये गुंजार पुस्तक प. ९ लेखक द्रौपदी अधिकार में कामदेव अर्थ करते है और इनके पुष्फभिक्खु ने सुत्तागमे में द्रौपदी पूजा अधिकार का सारा पाठ प्रक्षिप्त कहकर हटा दिया है । वैसे ही लेखक पृ. १६ पर देवलोक जिनालय में 'जिन' शब्द के अनेक अर्थ की कुकल्पना करके अर्थ बदलते है, वहीं पर पुष्फभिक्खू पाठ उडा देते है। कोई भी तटस्थ व्यक्ति इनकी इस चेष्टा पर मध्यस्थता से विचार करे तो इसमें उसे स्पष्ट ही आगमों का प्रेम नहीं अपितु साम्प्रदायिक अभिनिवेश - कदाग्रह ही नजर आएगा। द्रौपदी को मिथ्यात्वी मानना और कामदेव की पूजा की, यह मानना कदाग्रह ही है । 'जैन कथामाला' पृ. ५९ में इन्हीं के उपा. श्री मधुकर मुनिजी ने और 'तीर्थंकर चरित्र' भाग २ पृ. २९ पर रतनलाल डोसीजी ने स्पष्ट शब्दों में नियाणा करके आये रावण को दिग्विजय के पूर्व ही सम्यक्त्वधारी माना है। अतः शादी से पूर्व द्रौपदी को भी सम्यक्त्व मानने में कोई आपत्ति नहीं है। यह नियम है ही नहीं कि नियाणावाले जीव नियाणा पूर्ण न हो तब तक सम्यक्त्व से वंचित रहते है । यह तो स्थानकवासियों का अपने पक्ष की सिद्धि के लिये कल्पना से बनाया नियम है, इन्हीं के ग्रंथों से यह सिद्ध होता है और वह सम्यक्त्वी हुई तो अरिहंत परमात्मा की ही पूजा करेगी, कामदेव की कदापि नहीं । इसके विस्तृत समाधान के लिये 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पृ. १२४ से पृ. १२७ देखिये। . .. ... आगे लेखकश्री आगमकारों ने बतायी शाश्वती जिनप्रतिमाओं का अशाश्वत बनाने की पंडिताई कर रहे है । उनका कहना है “तीर्थंकर शाश्वत नहीं इसलिये वे मूर्तियाँ उनकी नहीं है, इसलिए उनका जैन धर्म से संबंध नहीं और नमुत्थुणं पाठ करना निरर्थक है ।” परंतु ये महापंडित यह बात तो गुप्त ही रखते है कि वे मूर्तियाँ किनकी है ? और अन्य किसी देव की मानो तो कौन ऐसा देव है जो शाश्वत है ? चराचर सृष्टि में सिद्ध परमात्मा के सिवाय कोई जीव शाश्वत पर्यायवाला नहीं है । वे सिद्ध परमात्मा भी सादि-अनंत भांगे से ही शाश्वत है, जबकि वे मूर्तियाँ तो शास्त्रकारों के हिसाब से अनादि (18
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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