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गुरु - अपरिश्रावी
गुरुवाणी-१ ही कहेंगे न? हाँ, तो सुनो, व्याख्यान सुनने वाले श्रोता भी व्याख्यान में अमूल्य जवाहरात से भी अधिक मूल्य वाले धर्म रूपी जवाहरात को हाथ भी लगाते हैं क्या? उन वस्तुओं पर नजरें डाले बिना ही वे धर्मस्थान से वापस चले जाते हैं। ऐसे लोगों को प्रामाणिक नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?