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६८ धर्म - गुणात्मक है
गुरुवाणी-१ दुःखभीरु नहीं पापभीरु .... ___पहले हमारे देश में वर्ण-व्यवस्था थी। जिसके कारण समस्त वर्ग एक दूसरे के पूरक होकर रहते थे। क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, और क्षुद्र इस प्रकार चार वर्ग थे। जिस वर्ग को जो काम सौंपा गया था उसे वही करता था। क्षत्रियों को देश की रक्षा का काम सौपा गया था। ब्राह्मणों को शिक्षित करने का काम सौंपा गया। वैश्य वाणिज्य- व्यापार करता था। अन्य सभी साफ-सफाई इत्यादि के कार्य क्षुद्र लोगों के अधीन किए गये थे। इस प्रकार कार्य का विभाजन होने से देशवासी बहुत ही सम्पन्न और सुख से जीवन व्यतीत करते थे। देश में राज्यतन्त्र भी बहुत ही सुन्दर ढंग से चल रहा था। आज वर्तमान में वर्ण-व्यवस्था चली जाने के कारण देश में सर्वत्र अराजकता बढ़ गई है। अधिकार का उपयोग....
स्त्री द्वारा किया हुआ पाप पति को भी लगता है। यदि पति उसे पापमार्ग से रोकता नहीं तो वह निश्चित रूप से उसे भी लगता है। पति को उसे रोकने का अधिकार है। शिष्य अयोग्य आचरण करता है और गुरु उसे नहीं रोकता है तो वह पाप गुरु को भी लगता है। उसी प्रकार प्रजा पाप करती है और राजा(राष्ट्रपति) नहीं रोकता है तो वह पाप राजा को भी लगता है। उसी प्रकार राजा गर्हित कार्य करता है और पुरोहित उसे नहीं रोकता है तो पाप का भागी पुरोहित भी बनता है। क्योंकि जिस अधिकारी को लोगों को रोकने का अधिकार है, तब भी वह उस बात को अनसूनी कर देता है तो पाप का वह भागीदार बनेगा ही । अनीति को धन्यवाद नहीं .....
एक समय की बात है किसी गांव में बाप-बेटे रहते थे। एक दिन दुकान से घर जाते हुए बाप ने पुत्र को कहा- देखो, बेटा मैं घर जा रहा हूँ, तुम जल्दी आ जाना। पिता घर गया, घर जाकर पुत्र की राह देखता