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गुरुवाणी-१
कितना मूल्य देवगण असंख्याता कैसे?....
देवलोक में असंख्याता देव उत्पन्न होते हैं जबकि मनुष्यलोक में संख्याता मनुष्य ही। देवलोक में इतने देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं?
समुद्र में प्रतिमा के आकार की बेलड़ियाँ होती हैं। मच्छ उन बेलड़ियों को देखते हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि इस प्रकार की आकृति हमने पहले कहीं देखी है। अन्त में उनको जातिस्मरण ज्ञान होता है और वे विचार करते हैं कि पूर्व जन्म में कुकर्म करके हम इस योनि में भटक रहे हैं। इस वैचारिक आघात के कारण वे अनशन करते हैं और वहाँ से मरण प्राप्त करके वे देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार मनुष्य संख्याता ही रहते हैं और देव असंख्याता उत्पन्न होते हैं। मूर्ति में साक्षात् दर्शन....
बर्मा के उत्तर में बैंगकांग नाम का शहर है। वहाँ बुद्ध की प्रतिमा है। वह पाँच टन सोने की बनी हुई है।५६ मण का एक टन होता है। सच्चे दिल से मूर्ति की उपासना के द्वारा भी बहुत से लोग तिरं जाते हैं। मनुष्य मूर्ति में साक्षात् परमात्मा के दर्शन कर सकता है। परन्तु जब उसका आत्मोल्लास उच्च कोटि का बनता है, तभी वह परमात्मा का दर्शन कर सकता है।
जो व्यक्ति शरीर, आयुष्य, सम्बंधों और सम्पत्ति आदि की अनित्यता का सदैव चिन्तन करता है, उनके चले जाने पर भी उसको तनिक भी शोक-ग्लानि नहीं होती।