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________________ ५६ कितना मूल्य गुरुवाणी-१ जानने की छटपटाहट है। अमेरिका में १ हजार डॉलर देने पर संवत्सरी प्रतिक्रमण होता है। अमेरिका के लोग प्रतिक्रमण विधि समझने के लिए भारत में आते हैं। विचार करो जिनको नहीं मिला है उनके लिए यह कितने महत्व का है। सूचक-स्वज.... ___ ढाई हजार वर्ष पहले की बात है। एक व्यक्ति को स्वप्न आया। स्वप्न में देखता है कि जनता पानी के लिए प्यास से तड़फड़ा रही है। उनके पीछे कुंआ दौड़ता है। कुंआ आवाज दे-देकर कहता है- पानी पीओ, पानी पीओ। किन्तु लोग तो पीछे देखने की अपेक्षा आगे की ओर चिल्लाते हुए, दौड़ते हुए चले जाते हैं। स्वप्न पूरा होता है। वह व्यक्ति किसी महात्मा के पास जाकर उस स्वप्न का रहस्य पूछता है। महात्मा कहते हैं- भाई! भविष्य में भयंकर दुष्काल पड़ने वाला है। साधु, साध्वी और सन्त महात्मागण आवाज दे-देकर इनके पीछे घूमेंगे किन्तु ये लोग आगे ही दौड़ेंगे। गुरु भगवान् स्वयं की वाणी रूपी पानी पिलाने के लिए पीछे दौड़ेंगे किन्तु लोग उस पानी को नहीं पीएंगे। मूल्यवान आभूषण कौन-कौन पहन सकता है? जो सेठ होगा वही न! गरीब मनुष्य क्या पहन सकता है? उसी प्रकार जिसके पास सद्गुण रूपी आभूषण होंगे वही धर्म को समझ सकेगा। सद्गुणों के साथ धर्म देदीप्यमान हो उठेगा। प्रदर्शन नहीं किन्तु दर्शन.... हमारा यह जीवन परमात्मा का दर्शन करने के लिए है। आज सब जगह प्रदर्शन हो रहा है। ऐश्वर्य का हो या वस्त्रों का, आभूषणों का हो या रूप सौन्दर्य का, बस केवल प्रदर्शन मात्र प्रदर्शन। विश्व के समस्त जीव स्वार्थों से भरे हुए हैं। जबकि परमात्मा ही एक ऐसा है जो परमार्थ से व्याप्त है। सूरदास अंधे थे। कुछ लोग कहते हैं कि वे जन्मान्ध थे, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि इस जगत् की सूरत को देखकर मुझे क्या करना है? बस जगत् का चेहरा नहीं देखना पड़े इसीलिए वे आँखों के सामने पट्टी बांध लेते थे। केवल परमात्मा का मुख ही देखने लायक है।
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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