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कितना मूल्य
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गुरुवाणी - १ मिला है, इसलिए जीव की यातना और पीड़ा का हमें ध्यान ही नहीं आता । जिस प्रकार अकबर को खाजा सामान्य पदार्थ लगता है उसी प्रकार हमें यह उत्तम कुल, आर्यदेश और जैन धर्म आदि सामान्य प्रतीत होता है । उन गरीबों के समूह को खाने के लिए खाजा मिलना कितना दुर्लभ है? उसी प्रकार हमारी आँखें बंद हो जाने पर लाख प्रयत्न करने पर भी यह मनुष्य जन्म हमें पुनः मिलने वाला नहीं है ।
श्रवण रुचि ....
एक व्यक्ति ने कहा- जगत् में दो प्रकार के मनुष्य हैं। कितने ही मनुष्य ऐसे हैं जो चोरी करते हैं और जेल में जाते हैं, तथा कितने ही मनुष्य ऐसे हैं जो जेल में जाते हैं और चोरी करते हैं । यह राजकीय संस्थाओं में चलता है। जेल में गये हुए नेतागण कहते हैं - हम पहले जेल में गए थे, अत: राज्य करने का अधिकार हमारा है और राज्य पर आसीन होते हैं, चोरी करने लगते हैं। ऐसे ही सब लोगों के भाषण सुनने का हम लोगों को खूब मन होता है जो विनाश की ओर ले जाता है। जबकि मनुष्य को आज धर्म की कल्याणकारी देशना सुनने का मन नहीं होता । जबकि सुनाने वाला स्वयं तुम्हारे सामने आता है। तुम उसको अपने जीवन में उतारो या नहीं उतारो वह तो सुनाता ही है । भगवान् की कितनी अपार करुणा है, कि जिसने चतुर्विध संघ की स्थापना की । इस संघ में शामिल होने के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं है। भूख और प्यास को सहन कर तथा पैदल चलकर साधु साध्वियों का संघ गांव-गांव घूमता है और परमात्मा का संदेश पहुँचाता है। परन्तु उस संदेश को ग्रहण करने वाले बहुत कम लोग हैं । देवों अथवा इन्द्रों को ऐसी प्रभुवीर की वाणी सुननी हो तो लाखों योजन का अन्तर काटकर आना पड़ता है और तभी सुन पाते हैं। जबकि यह साधु-साध्वी का संघ चलकर स्वयं तुम्हारे सामने आया है। श्रवण की रुचि उत्पन्न होना भी अति दुर्लभ है। आज इस भारत देश से जैन धर्म के विद्वानों को अमेरिका बुलाया जाता है। उनको नहीं मिला है इसीलिए