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गुरुवाणी-१
श्रवण परिवर्तन करता है न हो जाए मैं तुझे मुक्त नहीं कर सकता। विचार करिए, स्वस्थ होने पर छ: महीने तक वह पागलों के बीच में कैसे रह सकता है? उसी प्रकार जब मनुष्य को संसार की असारता समझ में आ जाए तो उसे पागलों के समुदाय में रहना कैसे अच्छा लग सकता है? कभी यह भी विचार किया है कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ ! मनुष्य जब जन्म लेता है उस समय उसके साथ असंख्यात जीव जन्म लेने योग्य होते हैं, उन असंख्यात जीवों में मेरा नम्बर लगा और जन्म हुआ। माता और पिता की कृपा से कुशलक्षेम पूर्वक हम बड़े हुए, हमें जिनशासन मिला, उत्तम संस्कार मिले और उत्तम कुल मिला। अहा! हम वास्तव में कितने भाग्यशाली हैं। अमूल्य वाणी....
उपदेश सुनने में एक कौड़ी भी लगती नहीं और बिना खर्च किए ही मुफ्त में सुनने को मिलता है, इसी कारण इसकी कीमत भी घट गई है। गाँव के चौरे पर बातें करेंगे और गप्पे मारेगें किन्तु धर्म सुनने के लिए नहीं आएंगे। इसी समय सिनेमा या किसी नेता का भाषण होता तो हम दौड़कर जाते। वहाँ पैसे भी खर्च करते और वाहवाही भी लेते। जबकि आज गुरुवाणी मुफ्त में मिल रही है। उपाश्रय में बैठक मुफ्त में मिल रही है। धर्म मुफ्त में मिल रहा है। साधु-साध्वी भी मुफ्त में मिले हैं। सब कुछ मुफ्त में मिला हुआ है। शायद इसी कारण गुरुवाणी को श्रवण करने की इच्छा नहीं होती है?
। भगवान में एक ऐसी विशेषता, ऐसा गुण होता है कि वे द्रष्टा होते हैं, चिंतक नहीं होते; क्योंकि चिंतन में सारी वस्तुओं का समावेश हो जाता है और कभी-कभी खोटी वस्तु का भी चिंतन हो जाता है जबकि आँखों देखी ही सत्य होती है। भगवान ऐसे ही द्रष्टा थे।