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________________ श्रवण परिवर्तन करता है गुरुवाणी-१ है और उससे समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं तथा परम तृप्ति मिलती है। उक्त तीनों स्तर अर्थात् भूमिका हमें प्राप्त हो जाए तो वास्तव में यह जीव सरलता से इस भयंकर संसार समुद्र को पार कर सकता है। अतः पहले प्रभुवाणी का श्रवण करो, फिर उसका चिन्तन करो और उसके बाद उसमें तन्मय बन जाओ। आवी रूड़ी भगति में पहेलां न जाणी पेलां न जाणी रे में तो पहेलां न जाणी संसारनी मायामां में तो वलोव्यं पाणी अर्थात् ऐसी रुचिकर भक्ति मैने पहले नहीं जानी थी, पहले न जानी थी, मैने पहले नहीं जानी थी। संसार की माया में लिप्त होकर आज तक पानी का बिलौना किया है। भवजलहम्मि असारे दुल्लहं माणुस्सं भवं। अर्थात् इस असार भव समुद्र में मनुष्य भव दुर्लभ है। दुनियाँ में दो अरब की आबादी होगी, उस आबादी में आत्मतत्त्व और परमात्म तत्त्व का विचार करने वाले कितने मनुष्य होंगे? आज हमने विचार को ही ताला लगा दिया है। पागलों के बीच समझदार .... __एक पागलों का अस्पताल था। उसमें जिसका दिमाग फिर गया हो वैसे ही व्यक्तियों को प्रवेश दिया जाता था। कुछ समय तक उसमें रखते थे। समय पूर्ण होने से पहले कोई पागल व्यक्ति समझदारी की बात भी करता तो वहाँ से उसे छोड़ते नहीं थे। एक पागल मनुष्य एक दिन पागलपन की अवस्था में फिनाईल की पूरी बोतल पी गया। जिस कारण उसके पेट में रहे हुए विषैले जन्तु भी अधोमार्ग से निकल गये। वह स्वस्थ हो गया। उसने चौकीदार से कहा- भाई, अब तो मुझे छुट्टी दो, मै स्वस्थ और समझदार हो गया हूँ। चौकीदार ने कहा- अरे, क्यों ऐसी मूर्खता भरी बातें कर रहा है। पागल, पागल ही रहता है। जब तक तेरी अवधि पूर्ण
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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