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________________ गुरुवाणी-१ श्रवण परिवर्तन करता है चिन्तन .... इंग्लैण्ड में एलिजाबेथ नाम की रानी हुई। वह वस्त्रों की बहुत शौकीन थी। बाजार में किसी भी किस्म का नया वस्त्र आ जाए, तो वह उसके घर पहुंचे बिना नहीं रहता था। उसके पास लगभग ३ हजार वस्त्रों की जोड़ियां थीं। इतना होने पर भी वह अतृप्त व असंतुष्ट रहती थी। सोचिये, एकेक वेश को बारी-बारी से पहनने का अवसर कब आएगा? और जब अवसर आएगा वह वस्तु पुरानी बन गई होगी अथवा उसकी फैशन समाप्त हो गई होगी। बस, यह सारा वेशों का संग्रह निरर्थक और अहंकार के पोषण के लिए ही है। आज मनुष्य को सुनने का इतना अधिक रंग लगा है कि कोई प्रसिद्ध वक्ता आता है तो उसे सुनने के लिए दो-तीन हजार की मेदिनी एकत्रित हो जाती है, किन्तु उस श्रवण पर कोई चिन्तन नहीं करता है। चिन्तन रहित ज्ञान केवल पानी होता है। पानी की शक्ति कहाँ तक? पानी पीते हैं तो कुछ समय के लिए प्यास बुझ जाती है किन्तु पुनः प्यास लगती है, उसी प्रकार जब तक श्रवण करते हैं तभी तक वह श्रवण रहता है। व्याख्यान कक्ष के बाहर जाते ही व्याख्यान का प्रभाव समाप्त हो जाता है, किन्तु श्रवण के बाद मनन होना चाहिए। चिन्तन दूध है .... मनन और चिन्तनज्ञान दूध जैसा है। केवल दूध पीने वाला व्यक्ति महीनों के महीने बीता सकता है, अतः दूध जैसा ज्ञान प्राप्त करना सीखो। दूध जैसा ज्ञान प्राप्त होने पर जीवन में तृप्ति का अनुभव होगा। यदि चिन्तनज्ञान हो तो जो आनन्द अर्थोपार्जन में होता है उससे कई गुणा अधिक आनन्द दान देने में होगा। निदिध्यासन (तन्मयता) अमृत है .... धर्म प्राप्त करने के बाद उसमें तन्मय बन जाना। तन्मयता से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह अमृत समान होता है। अमृत का स्वाद कुछ क्षण आस्वादन के लिए भी किया हो तो वह स्वाद वर्षों तक स्मरण में रहता
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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