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जोड़ और तोड़
गुरुवाणी-१ कैसा भोजन करते हैं ....
वस्तुपाल और तेजपाल वीरधवल राजा के मन्त्री थे। मन्त्री होने के कारण उनका सम्पूर्ण दिन मत्रंणा में ही बीत जाता था। तनिक भी अवकाश नहीं मिलता था। उनके गुरु महाराज विचार करते हैं कि वस्तुपाल और तेजपाल डूब जाएंगे, क्योंकि धर्म क्रिया करने का उन्हें अवसर नहीं मिलता और सत्संग भी छूट गया है। उन दोनों पर अत्यन्त कृपा होने से गुरु महाराज विहार कर धोलका आए। वैसे तो गुरु महाराज आते थे तब गुरु महाराज के पास जाते ही थे। भक्ति करते थे
और उनके सान्निध्य में अपना समय भी बिताते थे। इस बार वस्तुपाल उपाश्रय में आये नहीं इसलिये गुरु महाराज उनके घर जाते हैं। घर में वस्तुपाल नहीं मिलते हैं केवल रसोईया ही था। उसने गुरु महाराज का सम्मान किया। गुरु महाराज ने कहा- हे भोजन बनाने वाले ! आज तुम भोजन मत बनाना । घर में जो कुछ रूखा-सूखा हो वह भोजन करने के लिए मन्त्री को देना। रसोईये ने भोजन नहीं बनाया। वस्तुपाल घर आये, भोजन करने बैठे। उस समय रसोईया थाली में खाखरा आदि परोसने लगा। यह देखकर वस्तुपाल गुस्से में आ गये और पूछा- यह क्या है? रसोईये ने गुरु महाराज का जो आदेश था वह कह सुनाया। वस्तुपाल एकदम चौक गये। तुरन्त ही उसी घड़ी उपाश्रय की ओर दौड़े, गुरु महाराज के पैरों में पड़े और कहा- आप कब पधारे, मुझे तो सूचना भी नहीं मिली? गुरु महाराज कहते हैं- भाई, अब तुम बड़े आदमी हो गये हो, ठीक कह रहा हूँ न? मैं तुम्हारे रसोईये को बासी खाना परोसने के लिए कहकर आया था। उसके पीछे कारण था उसे सुनो ! तुम्हें ताजा भोजन करना है या बासी ही खाना है? क्योंकि यह तू जो कुछ भोग रहा है यह तेरे बाप-दादा का पुण्य है। पुण्य समाप्त होने पर क्या होगा? मैं तुझे केवल यही सन्देश देने आया हूँ । वस्तुपाल ने