SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ ६८ ६८ * श्रवण रुचि * नमस्कार में बाधक ४७ धर्म-गुणात्मक है:- ६७-७० * कैसा भोजन करते हैं ४८ * गगन मण्डप में गाय की प्रसूति ६७ श्रवण परिवर्तन करता है:-५०-५३ * वर्ण-व्यवस्था । ६७ * जाना जरूर है ५० * दु:खभीरु नहीं पापभीरु * केवल श्रवण पानी होता है ५०* अधिकार का उपयोग * चिन्तन ५१ * अनीति को धन्यवाद नहीं * चिन्तन दूध है ५१ * धर्म को समझो * निदिध्यासन अमृत है ५१ गुरु अपरिश्रावी:- ७१-७४ * पागलों के बीच समझदार ५२ * जौहरी की परख * अमूल्य वाणी ४३ * भूल स्वीकार = समाधि कितना मूल्य:- ५४-५७ * चण्डकौशिक * जीवन मूल्यवान है ५४ * आलोचना-सूक्ष्मबुद्धि से * दुर्लभ की प्राप्ति ५४ * ऐसी प्रामाणिकता व्यर्थ है ५५ मूल तत्त्वः ७५-७९ * सूचक स्वप्न ५६* दया * प्रदर्शन नहीं किन्तु दर्शन ५६ * अहिंसा * देवगण असंख्याता कैसे ५७* सत्य * मूर्ति में साक्षात् दर्शन ५७ * नरो वा कुञ्जरो वा धर्म की योग्यताः- ५८-६० * व्रतों की शक्ति * संसार में सब दुःखी हैं ५८* वसु राजा * गुणी ही धर्म के योग्य है ५८ सम्पूर्ण शरीर धर्म योग्य हैः-८०-८५ अक्षुद्रताः ६१-६६ * युवावस्था धर्म के लिए है ८० * पित्त के समान ६१ * अनाथी मुनि * प्रथम अक्षुद्र गुण-वर्णन ६१ * स्मरण में अंतिम, भूलने * स्वामिवात्सल्य की प्रथा ६२ में पहला * गंभीरता का फल ६२ * अनाथी मुनि का संकल्प ८३ * सम्पत्ति का प्रदर्शन ६२ * श्रावक की व्याख्या * छोटी बहू का उत्तर ६४ * नोरवेल-जिनवाणी * इच्छाएं आकाश के समान * श्रावक की दूसरी व्याख्या होती है ६५ रसे जीते जीतं सर्वम्:- ८६-८८ * सूक्ष्म बुद्धि से धर्म ६६* पाँच पर संयम ७५ द । ७७ ७७
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy