SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुक्रमणिका) २४ २५ (o Www. २७ * * धर्म-जीवनशुद्धिः- १-७ * शुद्धि प्रतिबिम्ब दिखाती है * रे! इस संसार में सुख प्राप्त करना! १* धर्म जीवन की पवित्रता * वर्ष नाम क्यों पड़ा? १* बिन्दु की शक्ति * मृत्यु एक मेहमान है २* धर्म किसे कहें? * श्री वस्तुपाल की जागृति ३* भाव का प्रभाव * मातृभक्त कपिल ४ प्रवासी: ३०-३२ धर्मरहित चक्रवर्ती पद मुझे नहीं * सिकन्दर का अन्तिम संदेश ३० चाहिए: ८-११ * सूई को साथ लाना * कल्याणकारी धर्म ८* परलोक * आचरण का ज्ञान आवश्यक है ८ रुडी ने रढियाळी रे:- ३३-३७ * कपिल का चिन्तन १० करुणा का एक आयाम हम कहाँ? १२-१५ * थावच्चापुत्र * बेर के झाड़ की छाया के समान १२ * देशना * एक से डूबता है १२* देशना के तीन बिन्दु * छः प्रकार का मानव होता है १३ * वाणी सुनने से वैराग्य का उद्भव ३५ ज्ञान का अञ्जन:- १६-१९ * गुरुतत्त्व का महत्त्व * परिवर्तन आवश्यक कहाँ है १६ धर्ममंगल: ३८-४१ * सत्संग की गंगा १६ * मंगल की व्याख्या * समझकर संस्कारित हो जाता पारसमणि है वह मानव १७ श्रेष्ठ दवा: ४२-४४ शासन-महासद्भाग्यः- २०-२३ * किसकी उपासना * जीव शिव है २० * तप ही दवा * यह जीवन कितना दुर्लभ है २० * अट्ठम किसे कहते हैं? * मानव जाति का इतिहास २१ अट्ठम का शुल्क * अर्थ नहीं, शासन प्राप्ति जोड़ और तोड: ४५-४९ महासद्भाग्य २२* नमस्कार धर्म-भावशुद्धिः - २४-२९ * हृदय से प्रणाम * योग्यता के विकास पर सिद्धि २४* शुश्रूषा * * *
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy