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________________ * * * १०५ * एक पर चार का आधार ८६ * नीति का धन १०१ * आर्य मंगु ८६ अन्तर्दर्शन:- १०३-१०५ * जिह्वा के दो काम ८८ अक्षय अन्तर्वैभव १०३ परिशीलन से प्राप्तिः- ८९-९२ * अनुकम्पा १०३ * घास ही दूध बन जाता है ८९* देह की नहीं, देव की पूजा १०४ * गौतमस्वामी अष्टापद पर्वत पर ८९* दो रोग । * कंडरीक-पुंडरीक ९० लोकप्रियताः- १०६-१०८ प्रकृति से सौम्यः- ९३-९५ * इहलोक विरुद्ध निंदा १०६ * नहीं देखने पर कल्याणकारी ९३ * निन्दा करना महापाप है १०६ * नौ प्रकार के कायोत्सर्ग ९३ * सरल हृदय की प्रार्थना १०७ * सरलता ९४ परम की यात्रा:- १०९-११३ * प्रतिछाया को नहीं, वस्तु * बहिरात्मा १०९ को पकड़ो ९४* अन्तरात्मा समता की साधनाः- ९६-९९ * मेरा कहाँ देता हूँ? * स्वभाव परिवर्तन आवश्यक है ९६* बस, प्रभु ही है ११० * तू जला तो नहीं न? ९६* विपत्तिः न सन्तु शश्वत् * महात्मा अंगर्षि ९७ * पवित्र छाया * समदृष्टि से सच्ची शांति ९८* परमात्मा * भामण्डल-आभामण्डल ९८* वो ही आस करे ११२ * ईर्ष्यालु सदा दु:खी ९८* निन्दनीय प्रवृत्ति का त्याग । * G.O.K ९९ लोकप्रियः- ११४-११६ सर्वत्र सत्य ही:- १००-१०२ * चार प्रकार के घड़े ११४ * प्रिय वाणी १०० * विनय * सत्य भी असत्य १०० ११० * * १११ १११ * * * ११२ *
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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