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श्रेष्ठ दवा
गुरुवाणी-१ और लोगों ने उसका बहिष्कार किया। वहाँ की सरकार ने उस डॉक्टर को जेल में बंद कर दिया। उसने कैदखाने में रहते हुए भी उपवास की प्रवृत्ति चालू रखी। अंत में सरकार ने थककर उसको जेल से मुक्त कर दिया। उस डॉक्टर ने मुक्त होकर उपवास की अस्पताल बनवाई। उस औषधालय में जो कोई भी रोगी आता उसको प्रवेश शुल्क के रूप में अठ्ठम करना पड़ता। अट्ठम के पश्चात् उस व्यक्ति को जिस प्रकार का रोग होता उसी अनुपात में वह उपवास करवाता था। डॉक्टर स्वयं चौरासी वर्ष की अवस्था में भी चुस्त और सशक्त था। तप के तो फायदे ही फायदे हैं।
लीभ और लाभ के बीच में। । केवल एक ही मात्रा का अंतर है।। । इसीलिए लीभ हमेशा आगे रहता है।। I ज्यों-ज्यों लाभ होता हैत्यों-त्योंलीभ. बड़ताजाता है। . . . . . . . . . . . .