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श्रेष्ठ दवा
श्रावण वदि ११
किसकी उपासना
संसार का स्वरूप ही ऐसा है जिसमें जीव एक के बाद एक दु:खों की पीडा का अनुभव करते रहते हैं । अनन्त काल से चल रही दुःख की हारमाला में मनुष्य फँसकर रखड़ता रहता है। जब तक संसार की असारता का स्वरूप उसके ध्यान में नहीं आएगा तब तक यह जीव प्रत्येक जन्म में अधिक से अधिक यातनाएं भोगता जाएगा। प्रमाद अर्थात् बैठे रहना प्रमाद नहीं है, किन्तु सारे दिन विषय-वासनाओं की विचारणा करते रहना एक तरह का प्रमाद है । ज्ञानियों ने जीवन में पंच परमेष्ठि की उपासना के लिए कहा है, किन्तु हम किसकी उपासना कर रहे है, जानते हो? पांचों इन्द्रियों के सुख की उपासना करते हैं। समाज का आधा भाग यानि नारियाँ परिवार के खाने की व्यवस्था में ही लगी रहती हैं! सुबह क्या खाना और क्या बनाना, दोपहर को, संध्या को और महीने भर क्या खाना है, अरे, वर्ष में हमें क्या खाना है इसकी भी तैयारी करती रहती है। छंदा, मुरब्बा, पापड़, बड़ी आदि .... यह जीव को भोजन की अनन्त वस्तुएं खाने पर भी कभी उसे तृप्ति नहीं हुई । गति चारे कीधां आहार अनन्त निःशंक, तोय तृप्ति न पाम्यो जीव लालचियो रंक..... अनन्त जन्मों के आहार के समूह को यदि इकठ्ठा किया जाए तो मेरु पर्वत के समान हो जाय तब भी जीव को तृप्ति कहाँ है ? तप ही दवा है ....
तप जैसी रोग की कोई दवा नहीं है। जगत् में प्रत्येक स्थान पर किसी भी प्रकार के काम करने वाले कारीगर को छुट्टी मिलती है। मनुष्य को आराम तो मिलना चाहिए न ! अब तो सरकार ने सप्ताह में दो दिन की