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धर्म-मंगल
गुरुवाणीयस्यास्ति वित्तं नरः कुलीनः स एव वक्ता स च दर्शनीयः।। स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः सर्वे गुणांः काञ्चनमाश्रयन्ते॥
अर्थात् जिसके पास विपुल धन होता है वही व्यक्ति कुलीन, वक्ता, दर्शनीय, पंडित, ज्ञानी और गुणवान होता है क्योंकि सब गुण कंचन/सोने के आश्रित होते हैं। धन के बिना सब कुछ शून्य होता है।
बाबाजी ने कहा- भाई! तुझे यदि सोने का भंडार चाहिए तो मेरे पास में जो पारसमणि है वह मैं तुझे देता हूँ। उस ओर सामने लोहे के डिब्बे में पारसमणि रखा हुआ है, वह लोहे का डब्बा लेकर के आ। वह धनलोभी मनुष्य उस डिब्बे को लेने के लिए गया। उसने सोचा कि पारसमणि लोहे के डिब्बे में कैसे रह सकता है? क्योंकि उसके स्पर्श मात्र से लोहखण्ड सोने का बन जाता है तथा यह डिब्बा लोहे का कैसे? कहीं ये बाबाजी मुझे धोखा तो नहीं दे रहे हैं। वह मनुष्य अपने विचारों में ही पड़ा रहा। बाबाजी तत्काल उठे और डिब्बे में से पारसमणि निकालकर उस लोहखण्ड के टुकड़े को स्पर्श कराया। तुरन्त ही वह लोहे का डिब्बा सोने का बन गया। यह देखकर उस मनुष्य ने उनसे पूछा- बाबाजी! यह कैसे हो गया? यह डिब्बा तो लोहे का है सोने का क्यों नहीं बना? बाबाजी ने कहा- भाई, वर्षों से यह मणि उसी स्थान पर पड़ा हुआ है, इस डिब्बे के चारों और जाले ही जाले छा गये हैं। इन जालों के ऊपर पारसमणि रखा हुआ है। यह मणि डिब्बे को छूता नहीं है इसलिए यह डिब्बा सोने का नहीं बना। यह देखकर वह धन लोभी सेवक आश्चर्य चकित रह गया और तत्काल ही बोला- अरे बाबाजी! ऐसी पारसमणि होने पर भी इसे आप तिजोरी में सम्भालकर क्यों नहीं रखते? बाबाजी कहते हैं- भाई, इसकी कोई कीमत ही नहीं है। सच्चा पारसमणि तो भगवान् का नाम है जो मेरे पास है, इस काँच के टुकड़े को कौन हाथ लगाता है? यह सुनते ही उस धनलोभी सेवक के मानसिक विचार एकदम बदल जाते हैं और वह स्वयं सन्यास धर्म स्वीकार कर लेता है। यह धर्म रूपी पारसमणि हमारे पास