SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुडी ने रढियाळी रे ३५ गुरुवाणी - १ देता है तो वह मोक्ष में जाता है। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ऐश्वर्य में लुब्ध होने के कारण सातवीं नरक में जाता है और उसकी रानी (कुरुमती) छट्ठी नरक में जाती है। देखो, वैभव और आसक्ति का ऐसा दारुण परिणाम? भगवान् कहते हैं- यदि तुम्हें अजर-अमर बनना है तो सिद्धि पद की आराधना करो। जीव पहले राग, द्वेष, मोह-माया आदि से बंधा हुआ होने के कारण दुर्गति में चला जाता है। जो जीव इस बंधन में से छूट जाता है, वह क्लेश से मुक्त हो जाता है और क्लेश से मुक्त होने पर वह सीधा मुक्ति में चला जाता है। प्रभु की उक्त देशना को सुनकर थावच्चापुत्र चोंक उठता है । क्या यह वैभव मुझे दुर्गति में ले जाएगा? देशना पूर्ण होती है। हम देशना को सुनते अवश्य हैं किन्तु कान से सुनते हैं, हृदय से नहीं । हृदय से जब देशना सुनते हैं तो ही हम उसकी कीमत समझ सकते हैं । अंधेरे को दूर करने के लिए बहुत बड़े प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती उसके लिए तो केवल एक किरण ही काफी है । रोज व्याख्यान सुनने वाले एक सेठ प्रतिदिन व्याख्यान में आते हैं और पहले आकर बैठ जाते हैं । एक दिन सेठ को विलम्ब हो गया। गुरु महाराज ने पूछा- सेठ ! आज विलम्ब से कैसे आए हो? सेठ कहता हैमहाराज! मैं आज अपने छोटे बालक को समझा रहा था । वह हठ कर रहा था कि मैं भी आपके साथ चलूंगा। गुरु महाराज ने कहा तो उस बालक को साथ ले आते न? सेठ ने कहा- गुरुदेव उसका काम नहीं है । साहेब ! हमारी छाती मजबूत है, लड़के की छाती कोमल होती है.... हम सुनते हैं तो हमारे ऊपर देशना का कोई असर नहीं होता है । यदि वह छोटा बालक देशना सुनकर वैराग्य के रंग में रंग जाए तो? देखा न, कैसे हैं आज के श्रावक ! 1 वाणी सुनने से वैराग्य का उद्भव . थावच्चापुत्र ने हृदय लगाकर भगवान् की देशना सुनी थी। एक ही देशना में उसको संसार का स्वरूप भयानक लगा । वहाँ से आकर अपनी
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy