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रुडी ने रढियाळी रे
गुरुवाणी-१ सुख भोगता था। एक समय भगवान् नेमिनाथ द्वारिका में पधारते हैं। थावच्चापुत्र उनकी देशना सुनने के लिए जाता है, उपदेश सुनता है। देशना....
भगवान् कहते हैं- भव्यात्माओ! यह जीवात्मा मनुष्य योनि में एक बार नहीं अपितु अनन्त बार आ चुका है, किन्तु धर्मरहित होने के कारण वापस इन्हीं पशु आदि योनियों में भटकता रहता है। बस- पुनरपि जननं पुनरपि मरणं - पुनरपि जननीजठरे शयनम्। अर्थात् बारम्बार जन्म लेना- बारम्बार मरना और बारम्बार माता के उदर में शयन करना। मनुष्य ऐसा मानता है कि धर्म के पीछे बहुत कुछ त्यागना पड़ता है/भोग देना पड़ता है। किन्तु, धर्म की अपेक्षा संसार में मन का, वचन का और वाणी का बहुत भोग देना पड़ता है। त्याग कठिन नहीं है, किन्तु उसका ज्ञान होना अत्यन्त कठिन है। किसी मनुष्य को बीड़ी त्याग करने को कहते हैं तो वह कहेगा- इसके छोड़ने से मुझे ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा, इस प्रकार बातें करेगा, किन्तु जब उसी व्यक्ति को डॉक्टर कहेगा- भाई! तु यदि बीड़ी नहीं छोड़ेगा तो तुझे कैंसर हो जाएगा। यह समझ में आते ही वह बीड़ी छोड़ देता है। इस प्रकार त्याग करना कठिन नहीं होता है किन्तु उसके लिए ज्ञान की प्राप्ति अवश्य ही कठिन है। देशना के तीन बिन्दु .... जहा जीवा बझंति - जीव किस प्रकार बंधन प्राप्त करते हैं। जहा जीवा किलिस्संति - जीव किस प्रकार क्लेश प्राप्त करते हैं। जहा जीवा मुच्चंति - जीव किस प्रकार मुक्ति प्राप्त करते हैं। ___ भगवान् की देशना इस तीन बिन्दुओं के आधार पर ही चलती है। मोहराजा पहले तो जीवों को बंधन में डालता है और बाद में अत्यन्त दुःखित करता है। समृद्धि का गर्व और आसक्ति मनुष्य को कहाँ ले जाकर पटकती है? चक्रवर्ती जैसा चक्रवर्ती यदि राज्य वैभव को नहीं छोड़ता है तो वह सातवीं नरक में जाता है और यदि उसका त्याग कर