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गुरुवाणी-१
धर्म-भावशुद्धि या धन की? धर्म का ही स्मरण/ध्यान होना चाहिए किन्तु हम सर्वदा धन के लोभ में ही डूबे रहते हैं। बिन्दु की शक्ति ....
धर्म का एक बिन्दु भी मानव के लिए संसार समुद्र का तारकहार बन जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विशाल संसार समुद्र के समक्ष एक बिन्दु क्या कर सकेगा? किन्तु नहीं, बिन्दु से बहुत कुछ हो सकता है। अमृत का एक बिन्दु भी मानव को समस्त दोषों से विकारों से मुक्त कर सकता है। अरे, मृत्यु शय्या पर पड़े हुए व्यक्ति को भी वह बिठा देती है। उसी प्रकार जहर का एक बिन्दु भी कौनसा अनर्थ नहीं कर सकता? धर्म की एक बिन्दु को भी जीवन में बराबर उतार लिया जाए और उसके स्वाद का अनुभव किया जाए तो सिर्फ यही जन्म नहीं कई जन्म सुधर सकते हैं। इस धर्म के बिन्दु में इतनी विपुल शक्ति है कि धन की अभिलाषा हो तो वह धन देता है और काम का अभिलाषी हो तो वह काम भी देता है। यह धर्म सब कुछ देगा और अन्त में मोक्ष भी देगा। धर्म किसे कहें?
धर्म किसे कहें? शास्त्रकारों के वचनानुसार सद्गुणोंसत्कार्यों का अनुष्ठान ही धर्म है और यह अनुष्ठान मैत्री आदि चार भावों से युक्त होना चाहिए। मैत्री अर्थात् परहित की चिंता और अन्य के सुख का विचार ही मैत्री कहलाती है। आज सर्वत्र स्वयं के स्वार्थ की ही विचारणा होती है। दिल्ली के एक किराने के व्यापारी जिसका नाम लवजी था। वह धर्म की खूब चर्चा-विचारणा करता था। इसकी पूरी मण्डली थी। इस मण्डली में मावजी नामक सामान्य व्यक्ति भी आता था। एक समय मावजी किसी कारणवश बाहर गांव गये थे। वापस लौटे तो उनकी पत्नी ने ऐसा सोचा कि मेरे पति बाहर गांव से आये हैं तो आज हलवा बनाया जाए, किन्तु घर में गुड़ नहीं था। मावजी की पत्नी लवजी भाई की दुकान पर गुड़ लेने गई । उसको पूर्ण विश्वास था कि लवजी भाई