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गुरुवाणी - १
हम कहाँ ?
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इसके पीछे कारण क्या है?' किन्तु कोई भी उत्तर नहीं दे पाता। एक समय एक भरवाड़, गाय, भैंस, बकरी चराने वाले के कान में यह बात पहुँचती है । वह कहता है- मुझे वहाँ ले चलो, मै इसका कारण खोज लूँगा । वह भरवाड़ वहाँ जाकर लोगों से पूछता है - इसके पहले भी कोई घटना हुई थी ? लोग पूर्व की सोना मोहरों के लोभ में तालाब के बीच डूबे मनुष्य की घटना बताते हैं। भरवाड़ कहता है- ओह ! यह तो एक से डूबता है अर्थात् लोभ से मनुष्य डूबता है, क्योंकि व्यन्तर ही पूर्व में लोभ के वशीभूत होकर डूबा था। लोभ एक ऐसी अनर्थकारी वस्तु है कि वह सबका सत्यानाश कर देती है । हमें केवल परलोक के लिए ही नहीं, किन्तु अपनी आत्मा और देश को बचाने के लिए भी धर्म चाहिए । धर्म के सिद्धान्त सम्पूर्ण विश्व को समझने के लिए होते हैं, केवल चार दीवारों के बीच में बैठने वाले मनुष्यों के लिए नहीं। हमारा सम्पूर्ण व्यवहार केवल पैसे के पीछे ही घूमता रहता है। छः प्रकार का मानव होता है
मानव छः प्रकार के होते हैं - १. अधमाधम, २. अधम, ३. विमध्यम, ४. मध्यम, ५. उत्तम, ६. उत्तमोत्तम । इसमें पहले नम्बर का अधमाधम मनुष्य इस लोक और परलोक दोनों को ही बिगाड़ देता है। भगवान् ने हमको समझाने के लिए नारकी और देवलोक के मध्य में हमको न रखकर पशुओं के बीच मे किसलिए रखा? हम समझ जाएँ की पाप और पुण्य भी कोई चीज है। अपनी आँख के समक्ष पशुओं की यातना/पीड़ा देखकर हमारा दिल कुछ पिघल जाए। धर्म कार्य की ओर प्रेरित होकर इस योनि में ही सुधरने का अवसर है। दृढ़प्रहारी जैसा पापी में पापी मनुष्य भी संसार सागर को तैर गया। वह यदि अन्य योनि में होता तो उसे तिरने का मौका कहाँ मिलता ? इसीलिए भगवान् ने हमको सबके बीच मे रखा है, तथापि हम भोगसुखों के पीछे ऐसे अन्ध बन गये है कि किसी भी दिन हमें यह विचार नहीं आता है कि मृत्यु के पीछे हमारा क्या होगा?