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हम कहाँ?
श्रावण वदि १
बेर के झाड़ की छाया के समान ....
मौज-मस्ती में डूबे हुए युवकगण मदमस्त बन जाते है । बंगला, गाड़ी, मौज-सुख आदि सब सुविधाएं मिलने से वे धर्म को भूल जाते हैं। उनके दिमाग में भोगसुख की ही विचारधारा चलती रहती है। प्राणीगण सर्वदा इस लोक के स्वर्ग में ही डूबे रहते हैं। प्रचंड रूप से तपती हुई भूमि में बेर के एक वृक्ष की छाया हो और मनुष्य उसकी छाया में बैठा हुआ हो, परन्तु वह छाया कब तक और कैसी? उसी प्रकार इन भोगसुखों की छाया भी क्षणिक होती है। यह वैभव समृद्धि बेर के वृक्ष के नीचे फैले हुए कांटों के समान होती है। जब मनुष्य की दृष्टि परलोक तक पहुँचती है तब उसे खयाल आता है कि मुझे क्या प्राप्त करना है? एक से डूबता है ....
राजा भोज के समय की बात है। उनके राज्य में पानी से लबालब भरा हुआ एक तालाब था। वहाँ किसी ने कहा- 'इस तालाब को जो तैरकर पार कर जाएगा उसे मैं एक लाख सोना मोहर दूंगा।' एक मनुष्य ने यह बीड़ा स्वीकार किया किन्तु वह तालाब को तैरकर पार न कर सका, बीच में ही डूब गया तथा वह मरकर व्यन्तर के रूप में उत्पन्न हुआ। उसने अपने ज्ञान से अपना पूर्वभव देखा। उस व्यन्तर ने तालाब में एक आश्चर्य उत्पन्न किया। तालाब के मध्य में स्वयं का एक हाथ ऊँचा करता है और आवाज देता है - एक से डूबता है... एक से डूबता है, इस आवाज से लोग डर जाते हैं और सोचते हैं कि यह कोई भूत-प्रेत की लीला है। भोज राजा तक यह बात पहुँचती है। भोज राजा अपने विद्वानों से कहता है- 'इस तालाब में से हाथ निकलता है और आवाज करता है,