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धर्मरहित चक्रवर्ती पद मुझे नहीं चाहिए
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गुरुवाणी - १ कड़ी का अर्थ यह है- यह संसार अस्थिर है। इस संसार मे कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। आँख बंद होने के पश्चात् कुत्ता, बिल्ली और चूहे इत्यादि की योनियां सामने नजर आती हैं । हमने ऐसा कौनसा सुकृत किया है जिसके कारण हम इन पशु योनियों में नही जाएगें ? कपिल मुनि चोरों से गीत की कड़ी की पुनरावृत्ति करवा रहे है और ५०० चोर भी उस गीत को गाते-गाते तथा उस पर विचार करते हुए प्रतिबोध को प्राप्त हो जाते हैं । अन्त में वे दीक्षा ग्रहण करने को उत्सुक हो जाते हैं।
धर्म के मूल पाँच तत्त्व हैं - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, निष्परिग्रहता । यही तत्त्व साधु धर्म के पँच महाव्रत हैं। इन पाँच महाव्रतों में रही हुई शक्ति सामान्य नहीं होती है । उस शक्ति का सामर्थ्य ऐसा प्रबल होता है कि वह समस्त पृथ्वी को कंपित कर सकता है और उन व्रतों में तनिक सी भूल भी भवभ्रमण को बढ़ा देती है।