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धर्मरहित चक्रवर्ती पद मुझे नहीं चाहिए
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गुरुवाणी - १ को सहन करना सीखना ही चाहिए। हमारा रुपिया क्या अमरिका में काम आ सकता है? नहीं, यह सम्पत्ति जो इसलोक में भी काम नहीं आती है तो फिर परलोक में वह कैसे काम में आ सकती है ? कपिल का चिन्तन ....
कपिल विचार करता है - राजा से दो मासा सोना ही क्यों माँगा जाए? अधिक माँग लूँ यही ठीक रहेगा, क्योंकि उस लड़की के साथ मुझे संसार रचाना है, अत: जब देने वाला दे रहा है तो फिर कम क्यों माँगूँ? इस प्रकार के विचार ही विचार में दो मासा सोना से बढ़ता हुआ करोड़ तक पहुँच जाता है । पुन: विचार - शृङ्खला चलती है और वह सोचता है कि करोड़ की सम्पत्ति से भी मेरा काम नहीं चलेगा? क्यों न राजा से सारा राज्य ही माँग लूँ जिससे की मेरा भावी जीवन शान्ति से व्यतीत हो जाए। एकाएक उसकी विचारधारा पलटती है। कपिल के पास एक गुण मातृभक्ति था और दूसरा गुण उसमें चिन्तनशीलता का था । वह विचार करता है - जिस राजा ने मुझे कैदखाने में रखने के स्थान पर कुछ माँगने को कहा और मैं उसका सर्वस्व लूंटने का विचार करने लगा ? अहो ! माता ने मुझे यहाँ किसलिए भेजा था और मैंने यहाँ क्या नाटक प्रारम्भ कर दिया ? उसके विचार एकदम बदल जाते हैं। संसार के स्वरूप को वह समझ लेता है और साधु बनने का विचार करता है। मनुष्य सब का विचार करता है किन्तु किसी दिन अपना विचार भी करता है ? पूर्ण विचार करने के पश्चात् वह कपिल राजा के पास आता है और अपने समस्त विचार 'साधु बनना चाहता हूँ' उनके समक्ष रखता है । तत्काल ही साधुवेश धारण कर वह वहाँ से निकल पड़ता है। मार्ग में उसे लूटने वाले ५०० चोर मिलते हैं। चोर लोग उसको फक्कड़ समझ कर कोई भजन सुनाने का आग्रह करते हैं। कपिल मुनि गाते हैं और उस गीत की कड़ी को चोरों से भी बुलवाते हैं। उस गीत की