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________________ ११५ गुरुवाणी-१ लोकप्रिय दूसरा घड़ा ऐसा होता है कि वह अमृत से भरा हुआ तो होता है किन्तु उसका ढक्कन विषमय होता है। तीसरे प्रकार का घड़ा जहर से भरा हुआ होता है किन्तु उसका ढक्कन अमृत युक्त होता है। चौथे प्रकार का घड़ा जहर से भरा हुआ तो होता ही है तथा उसका ढक्कन भी जहर वाला होता है। घड़ों के भेंदो के अनुसार ही मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं १. उत्तमोत्तम - जिनके हृदय में सदा अमृत भरा रहता है और जिनकी वाणी से भी सर्वदा अमृत बरसता रहता है। उसे मनुष्य सन्त पुरुष कहते हैं। २. उत्तम - हृदय तो अमृतमय होता है किन्तु वाणी कड़वी होती है। जैसे - पिता और पुत्र । पिता के हृदय में अमृत भरा हुआ होता है किन्तु पुत्र को शिक्षा देने के लिए कटु वाणी का भी प्रयोग करता है। ३. अधम - हृदय में जहर भरा हुआ होता है और वाणी में अमृत होता है। अधिकांशतः मनुष्य इसी कोटि में आते हैं। ऐसे मनुष्यों से संभलकर ही रहना आवश्यक है। मनुष्य क्रोधी हो, लोभी हो, अभिमानी हो तो स्पष्ट हो जाता है, किन्तु मायावी मनुष्य की तो खबर ही नहीं पड़ती। ४. अधमाधम - इस कोटि के मनुष्य के हृदय और वाणी दोनों में ही जहर भरा हुआ होता है। दुर्जन मनुष्य हलाहल जहर से भरे हुए होते हैं। सच्चा धर्मी ही लोकप्रिय बनता है। जगत को दान के द्वारा वश में किया जा सकता है किन्तु श्रुत और शील की मूल कसौटी तो विनय ही है। विनय.... काशी में एक धुरन्धर विद्वान् थे। शास्त्रों का परावर्तन करते हुए उनके हृदय में एक सन्देह उत्पन्न हुआ। उस शंका का समाधान करने के लिए बहुत प्रयत्न किया किन्तु समाधान न हो सका। उनको सूचना मिली की इसी नगरी में एक ब्राह्मण है और शास्त्रों के सतत अभ्यासी हैं । सम्भव है वे मेरी शंका का समाधान कर सकें। एक महाविद्वान् सामान्य ब्राह्मण
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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