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________________ लोकप्रिय भादवा वदि६ धर्मार्थी श्रावकों का चौथा गुण है - लोकप्रिय। (भादवा वदि २ के दिन भी इस विषय पर कुछ प्रकाश डाला गया था।) सम्पूर्ण विश्व के लोगों की यह मनोकामना है कि मैं समस्त लोगों का प्रिय कैसे बनूं? जिसको लोकप्रिय बनना हो उसको लोकविरुद्ध किसी प्रकार का कार्य नहीं करना चाहिए। लोकप्रिय बनने के लिए वाणी पर संयम रखना अनिवार्य/अत्यावश्यक है। वाणी व्यर्थ नहीं जानी चाहिए, यह उसकी प्रथम साधना है। आज तो बहुतायत से वाणी का अपव्यय होता है। एक कहावत है- बहुत बोलता है वह झूठा और बहुत खाता है वह रूखा।जो मनुष्य सीमा से अधिक बहुत बोलता रहता है उसके बोलने में सत्य का अंश बहुत कम रहता है और जो बहुत खाता है उसके खाने में रस नहीं रहता है। सीमित मात्रा में ही भोजन को खाने में मजा आता है। वाणी रूपी धन का जैसे-तैसे अपव्यय करने से वह यहीं समाप्त हो जाती है। तीर्थंकर परमात्मा भी पहले वाणीधन का संचय करते हैं और बाद में ही देशना देते हैं। यदि केवलज्ञान के पूर्व ही देशना दें तो वाणीधन की शक्ति भी समाप्त/खर्च हो जाए। मुनि शब्द से ही मौन शब्द बना है। मुनि की समस्त प्रवृत्ति मौन से ही चलती है। वचनगुप्ति और भाषा-समिति इन दोनों का स्वतन्त्र निर्माण किस लिए? वचनगुप्ति अर्थात् सम्भव हो वहाँ तक बोलना ही नहीं है और यदि कदाचित् बोलने की आवश्यकता पड़े तो भाषासमिति अर्थात् उपयोग पूर्वक बोलें। संसार में समग्र क्लेशों का मूल वाणी का दुरुपयोग ही है न? चार प्रकार के घड़े.... चार प्रकार के घड़े होते हैं। पहला घड़ा ऐसा होता है जो अमृत से भरा हुआ होता है और उसका ढक्कन भी अमृत से भरा हुआ होता है।
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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