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________________ गुरुवाणी - १ विपत्तिः न सन्तु शश्वत् .. पाँचों पाण्डवों की माता कुन्ती ने क्या मांगा था खबर है ? कुन्ती ने देव के पास से यही याचना की थी, मुझे सदा विपत्ति में रखना। क्योंकि विपत्ति में रहूंगी तभी मैं भगवान् को याद कर सकूंगी। देव मिलने पर आप उससे सम्पत्ति मागेंगे या विपत्ति ? परम की यात्रा १११ पवित्र छाया . 1 देव ने कहा- मैं आपके भीतर ऐसी चमत्कार शक्ति भर दूंगा, जिससे की लोगों में आपकी अत्यधिक प्रसिद्धि होगी । यह सुनकर सन्त कहता है मुझे ऐसी प्रसिद्धि नहीं चाहिए, क्योंकि उस प्रकार की प्रसिद्धि से लोग मेरे पीछे पड़ेंगे और मैं भगवान् को भूल जाऊँगा । इसीलिए मुझे इस प्रकार की शक्ति की आवश्यकता नहीं है । मेरे हाथ से जगत् का अत्यधिक कल्याण हो और मुझे खबर भी नहीं पड़े ऐसी कोई चमत्कारिक शक्ति आप दे सकते हों तो मुझे दो। क्योंकि, मुझे यदि ऐसा आभास हो जाए कि मैं चमत्कार कर सकता हूँ तो फिर उस दशा में मेरे भीतर अहंकार भी आ जाएगा, तो .... वह देव तथास्तु कह कर चला गया। वह सन्त जब भी बाहर निकलता उस समय उसकी परछाया में कोई भी मनुष्य आ जाता तो वह रोगी भी निरोगी हो जाता, दुःखी भी श्रीमन्त बन जाता, अन्धा भी दृष्टि वाला बन जाता। इस प्रकार उनकी परछाया के भीतर जो भी आता वह मालामाल हो जाता। लोग उनको पवित्रछाया के नाम से पहचानने लगे। जब मनुष्य की अन्तरात्मा की ओर दृष्टि जाती है तब उसे अपनी प्रख्याति अच्छी नहीं लगती, उसे तो भगवान् की प्रसिद्धि ही अच्छी लगती है । परमात्मा... जब मनुष्य इस प्रकार अन्तर्मुखी बन जाता है तब उसका प्रभु के साथ सम्बन्ध जुड़ जाता है और जब यह सम्बन्ध उत्कृष्ट कोटि का बन जाता है तो उसकी आत्मा परमात्मा बन जाती है। वस्तुतः आत्मा परमात्मा
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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