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________________ परम की यात्रा गुरुवाणी-१ ही है, किन्तु उसके सच्चे अर्थ को हम समझ नहीं सके हैं। भीतर में रहे हुए भगवान् को हम पहचान नहीं सके हैं। केवल मन्दिरों और तीर्थों में उनकी खोज करने के लिए निकलते हैं। प्रभु की भक्ति में मस्त मनुष्य को किसी प्रकार का भय नहीं होता। वो ही आस करे.... अकबर राजा के राजदरबार में अनेक कवि थे उनमें एक गङ्ग नाम का कवि भी था। वह गङ्ग कवि प्रतिदिन भगवान् की स्तुति करता था और किसी साधु-सन्त की स्तुति भी करता था किन्तु कभी भी किसी भी राजा महाराजा की स्तुति नहीं करता था। दूसरे सब कविगण अकबर को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति करते थे। एक दिन ईर्ष्या से प्रेरित होकर कितने ही कवियों ने मिलकर अकबर राजा से कहा - हे राजन्! यह गङ्ग कवि किसी भी दिन आपकी स्तुति (प्रशंसा) नहीं करता है, आप चाहें तो परीक्षा कर सकते हैं। अकबर राजा ने परीक्षा के लिए आस करो अकबर की इस समस्या को पूर्ति के लिए राजसभा में रखा। विभिन्न कवियों ने अपनी-अपनी दृष्टि से नवीन-नवीन पंक्तियां बनाकर इस समस्या की पूर्ति की। राजा ने गङ्ग कवि को भी कहा - आप पूर्ति कीजिए। गङ्ग ने कहा - कल करूँगा। दूसरे दिन राजसभा पूर्ण रूप से भरी हुई थी। गङ्ग कवि पूर्ति करता हुआ कहता है - जिसको हरि में विश्वास नहीं वो ही आस करे अकब्बर की। गङ्ग में प्रभु के प्रति कैसी भक्ति होगी कि वह अकबर बादशाह जैसे को भी उक्त पंक्ति कह सका। जब जीवन में सद्गुण प्रकट होते हैं तभी आत्मा की वास्तविक पहचान होती है। निन्दनीय प्रवृत्ति का त्याग.... मनुष्य को लोकप्रिय बनने के लिए इसलोक और परलोक के विरुद्ध किसी प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिए, सरल स्वभावी बनना चाहिए। शक्ति होते हुए भी दु:खी व्यक्तियों की जो पाईभर
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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