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गुरुवाणी-१
सर्वत्र सत्य ही पूछा - उस तापस ने उत्तर दिया - जो जानता है वह बोलता नहीं, जो नहीं जानता है वह बोलता है। अर्थात् आँख जानती है किन्तु बोलती नहीं और जीभ नहीं जानती है किन्तु बोलती है। वह तापस उक्त वाक्यों की पुनरावृत्ति करता रहा। यह सुनकर उन लुटेरे चोरों ने कहा - तुम सत्य बोलो, तुम्हारी सत्यवादी के रूप में प्रसिद्धि है, या असत्य बोलो। हमारा . कुछ नहीं बिगड़ेगा, तुम्हारी प्रसिद्धि जिस रूप में है वह समाप्त हो जाएगी। उस तापस ने विचार किया - मै यदि असत्य बोलूंगा तो मेरी प्रसिद्धि धूल में मिल जाएगी। इसीलिए उसने सत्य कह दिया - इन झाड़ों के झुरमुट में लोग बैठे हुए हैं। इस सत्य का यह परिणाम हुआ कि चोरों ने उन सभी को लूट लिया और मार डाला। यह कौशिक नाम का ऋषि सातवीं नरक में गया। महात्मा कहते हैं - ऐसा सत्य मत बोलो जिससे कि किसी की जान चली जाए। नीति का धन ....
जीवन में वाणी की सच्चाई जितनी आवश्यक है उतनी ही न्याय और नीति की आवश्यकता है। नीति की कमाई सत्कार्य की ओर प्रेरित करती है। एक सेठ थे। उनके यहाँ बहुत बड़ा परचूनी का व्यापार चलता था। उस सेठ ने क्या किया? माल की खरीद-बिक्री करने की दृष्टि से तराजू के बाँट उसने अलग-अलग रखे थे। सेठ के दो पुत्र थे। एक का नाम वधिया और दूसरे का नाम घटिया रखा था। इस सेठ को जब माल खरीदना होता तो वह वधिया को आवाज देता – मण का बाँट ला। वधिया अधिक वजन वाला मण का बाँट ले आता और जब देने का होता तो वह घटिया को आवाज देता। वह घटिया कम वजन वाला मण का बाँट लाकर दे देता। इस अनीतिमय व्यापार से वह सेठ बहुत खुश था। उस सेठ ने बड़े लड़के का विवाह किया। बहू घर में आई। उसने घर का सारा रंग ढंग देखा। एक दिन उसने ससुरजी से पूछा - बापू, आप वधिया
और घटिया यह कहकर किसको बुलाते हो? अपने घर में ऐसे नाम तो किसी के हैं नहीं। बहू की यह बात सुनकर उस सेठ ने सच्ची बात का