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________________ गुरुवाणी-१ समता की साधना G.O.K.... एक मनुष्य इंग्लैंड की अस्पताल का निरीक्षण करने के लिए निकला। इस अस्पताल की ऐसी व्यवस्था थी कि प्रत्येक पलंग पर वहाँ जिस प्रकार का बीमार हो उसी प्रकार की सूचना अंकित रहती थी, जैसे - क्षय, टी.बी. आदि। उसने घूमते हुए एक बोर्ड पर G.O.K. लिखा हुआ देखा। उसने सोचा यह भी किसी प्रकार की बीमारी का नाम होगा। उसने डॉक्टर से पूछा – यह किस प्रकार की बीमारी है? डॉक्टर कहता है - GOD ONLY KNOWS अर्थात् केवल भगवान् ही जानता है। हमारे में भी ईर्ष्या आदि स्वभावगत दोषों की ऐसी बीमारी फैली हुई है कि उसका उपचार ईश्वर गुरु भगवान्/ज्ञानी महात्मा ही जानते हैं। धर्म करने वाला नीतिमान होना चाहिये। धर्म का पहला लक्षण है-मैत्री अर्थात् परहित चिंता। दूसरा लक्षण है-दूसरों को सुखी देखकर प्रमुदित होना। तीसरा लक्षण हैकारूण्य अर्थात् दूसरों के दुःख को देखकर मन द्रवित हो उठे। चौथा लक्षण है-माध्यस्थ अर्थात् उपेक्षा भाव।।
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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