________________
परिशीलन से प्राप्ति
श्रावण सुदि ९
घास ही दूध बन जाता है ....
धर्म को जीवन में इस प्रकार गूंथना/एकमेक करना चाहिए कि हमारे जीवन से किसी को धर्म की प्राप्ति हो तभी हमें धर्म मिलना सुलभ बन सकता है। किन्तु, हमारे व्यवहार के द्वारा किसी दूसरे को अधर्म की प्राप्ति हो तो हमारे लिए भी धर्म का मिलना दुर्लभ हो जाता है। व्याख्यान पूर्ण रूप से कब पचता है? जो उसका बारम्बार परावर्तन अर्थात् चिन्तनमनन होता है तभी उसका वास्तविक रहस्य समझ में आता है। गाय भी पहले जल्दी से खाती है और फिर आराम के क्षणों में जुगाली करती है तभी उससे हमें दूध की प्राप्ति होती है। जानते हो भगवान् वज्रस्वामी कैसे बने? एक ही वाक्य का उन्होने पाँच सौ बार परिशीलन किया था और उसी कारण से उन्हे पदानुसारिणी लब्धि मिली थी। गौतमस्वामी अष्टापद पर्वत पर ....
एक समय भगवान् ने देशना में कहा- जो व्यक्ति स्वयं की आत्मलब्धि से अष्टापद पर्वत पर जाता है वह उसी भव में मोक्ष जाता है। गौतमस्वामी को ऐसा प्रतीत हुआ की भगवान् मुझे ही कहते हैं कि हे गौतम! तू तद्भव मोक्षगामी है। क्यों न, अपनी आत्मलब्धि से अष्टापद पर्वत पर जाकर इस बात का निर्णय ही कर लूं। ऐसा निर्णय कर गौतमस्वामी आत्मलब्धि से सूर्य की किरणों का आश्रय लेकर अष्टापद पर्वत पर पहुँचे और वहाँ जगचिंतामणि स्तोत्र की रचना की। दर्शन करने के उपरान्त वे एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। उनके दर्शनों के लिए देवगण वहाँ आते हैं, उन देवों में कुबेरभंडारी देव भी था। गौतम स्वामी देशना देते हैं । देवगुरु का स्वरूप समझाते हैं । गुरु का स्वरूप समझाते हुए