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गुरुवाणी - १
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जिह्वा के दो काम
कुदरत ने जिह्वा को दो काम सौंपे है । १. खाने का और २. बोलने का । जिस मनुष्य का जिह्वा पर अधिकार नहीं होता उसके जीवन में सदाचार, तप और त्याग देखने में नहीं आता । ये समस्त झगड़े किस कारण से होते हैं? एक मात्र जिह्वा से ही न? अरे ! हड्डी रहित यह जीभ अनेक मनुष्य की हड्डियों का चूरा बनाने में देर नहीं लगाती ।
एक समय दाँत और जीभ के बीच में संवाद हुआ। दाँत ने जीभ को कहा- जीभ ! तू चुपचाप बैठ जा, क्योंकि तू बत्तीस राक्षसों के बीच में रही हुई है। जो हमारी बत्तीसी के बीच में आ गई तो तेरा कचूमर निकल जाएगा। यह सुनकर जीभ ने कहा- अरे राक्षसों ! तुम भी सीधे चलो, अन्यथा तुम सभी को एक झटके में समाप्त कर दूँगी। बोलने पर संयम न हो तो बत्तीसी भी गिर जाती है । यही जीभ लोगों का कल्याण भी कर सकती है।
रसे जीते जीतं सर्वं
इन्द्रियों में रसनेन्द्रिय को जीतना बहुत कठिन है। गुप्तियों में मनोगुप्ति को जीतना दुष्कर है और व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन दुष्कर है।
धर्म के मूल तत्त्व - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह हैं ।