SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवाणी-१ सम्पूर्ण शरीर - धर्म योग्य है उसको तार दिया। हम भी जो स्नेह से उस प्रभु के साथ सम्बन्ध बांधे तो वह इस सम्बन्ध को किसी भी दिन तोड़ेगा नहीं। कदाचित् हम उसे तोड़ भी दें तो भी.... अनाथीमुनि का संकल्प .... ____ मुनि महाराज कहते हैं- मरणावस्था में पड़े हुए मैने मन में संकल्प किया कि जो यह काया रोगरहित हो जाए तो मैं भगवान् को समर्पित हो जाऊँगा। मराठी में एक कहावत है- सत्य संकल्पाचा दाता भगवान् आहे। संकल्प सत्य होता है तो भगवान् उसे अवश्य पूर्ण करते हैं। भगवान् उसकी सहायता को आए। आत्मा के भीतर ही परमात्मा निवास करता है। भगवान् कोई बाहर से नहीं आते हैं? व्याधि शान्त हो गई। छ:-छ: महीने से भोग रहे मेरी उस भयंकर पीड़ा को नष्ट होते हुए देर नहीं लगी। स्वस्थ होने के बाद मैने घर के समस्त सदस्यों से आज्ञा मांगी कि मै जा रहा हूँ। आज हम सामान्य सा एक नियम भी अखण्ड रूप से नहीं पाल सकते। हम नियमों में, किसी न किसी प्रकार मार्ग निकाल लेते हैं। इसी कारण हमारे साथ भगवान् भी मार्ग निकाल लेते हैं। भगवान् के साथ हम सम्बन्ध बांधते ही नहीं। मुनि महाराज दृढ़ संकल्पी थे। हमारे जैसे नहीं कि स्वस्थ हुए और भूल गये। माता-पिता, स्त्री, और प्रजागण सब सामने आए, जाने के लिए कोई भी आज्ञा देने को तैयार नहीं था। मातापिता स्नेही-स्वजनों के रोकने पर भी वह निकलकर भगवान् को समर्पित हो गया। जब तक अंगोपांग पूर्ण हो, बुद्धि बराबर काम देती हो तभी धर्म कर लो। शास्त्रों में भी देखते हैं कि महापुरुष छोटी उम्र में ही दीक्षित हो जाते हैं, वे शासन के चमकते हुए सितारे बन जाते हैं। हरिभद्रसूरि जी महाराज, हेमचन्द्राचार्य, विजयहीरसूरिजी महाराज और उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज आदि।
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy