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लघु शांति स्तव सूत्र सौभाग्य मुझे द्रव्य से मिल तो गया है; परन्तु वास्तव में उनके चरण की धूल होने की भी मेरी योग्यता नहीं है । प्रभु ! आपको नमस्कार करता हूँ और जब तक संसार में हूँ, तब तक आपका सेवक बनने की योग्यता प्रकट
हो, ऐसी अभ्यर्थना करता हूँ।' गाथा: १ सर्वामर -सुसमूह -स्वामिक-सम्पूजिताय "न जिताय। १३भुवन-जन-पालनोद्यततमाय सततं नमस्तस्मै।।४।।
अन्वयः
"सर्वामर -सुसमूह-स्वामिक-सम्पूजिताय न जिताय । १३भुवन-जन-पालनोद्यततमाय तस्मै सततं नम।।४।। गाथार्थ :
सभी देवों के सुंदर समूह तथा उनके स्वामियों द्वारा विशिष्ट प्रकार से पूजित", किसी से नहीं जीते गए, विश्व के जीवों का रक्षण करने में तत्पर ऐसे शांतिनाथ भगवान को मेरा नमस्कार हो !
११ सर्वामर -सुसमूह-स्वामिक-सम्पूजिताय1 - सभी देवों के सुंदर समूह तथा उनके स्वामी इन्द्र महाराज से सम्यग् प्रकार से पूजित। 11. सनरामरसुरस्स णं सव्वस्सेव जगस्स अट्ठमहापाडिहेराइपूयाइसओवलक्खियं । अणण्णसरिसमचिंतमाहप्पं केवलाहि ट्ठियं पवरुत्तमत्तं अरहं ति ति अरहंता ।
नमस्कार स्वाध्याय प्राकृत विभाग पृ. ४२ सर्व-सभी अमर-देव वे सर्वामर उनका सुसमूह वह सर्वामरसमूह, उनके स्वामिक वह सर्वामरसुसमूह-स्वामिक, उनके द्वारा सम्पूजित वह सर्वामर-सुसमूह-स्वामिक-सम्पूजित, उसका सर्वामरसुसमूह-स्वामिक-सम्पूजिताय उसमें सुसमूह-सुंदर यूथ स्वामि' को 'क' प्रत्यय स्वार्थ में लगा हुआ है। सम्पूजित-सम्यक् प्रकार से पूजित, विशिष्ट प्रकार से पूजित । सुसमूह के स्थान पर ससमूह का पाठ भी मिलता है। उसका अर्थ 'अपने-अपने समूह के साथ ऐसा होता है।