________________
लघु शांति स्तव सूत्र
साथ एक संबंध स्थापित करने के लिए समग्र अतिशयों के रूप में 'महासंपत्ति से युक्त' ऐसे विशेषण से प्रभु को नमस्कार किया है । ८ शस्याय - प्रशंसा के योग्य (ऐसे श्री शांतिनाथ भगवान को मेरा नमस्कार हो ।)
७९
जिसका जीवन गुणों से समृद्ध होता है, वही प्रशंसा के योग्य हो सकता है। संसार के जीवों में मुख्यतः स्वप्रशंसा की भूख होती है, परन्तु गुणसमृद्धि नहीं होती । कहीं प्रशंसा का पात्र बनने लायक कोइ गुण हो, तो भी दूसरे अनेक दोष होने के कारण प्रायः किसी का संपूर्ण व्यक्तित्व प्रशंसा पात्र नहीं बन सकता। जब कि शांतिनाथ भगवान का व्यक्तित्व अत्यंत प्रशंसनीय था । अनेक जन्मों की साधना के परिणामस्वरूप वे अनेक गुणों से सहकृत उत्कृष्ट पुण्य के भोक्ता थे। उनके पुण्य के प्रभाव से ही वे चक्रवर्ती बनकर षट्खंड के भोक्ता बने थे। नवनिधान उनके चरण में रहते, चौदह रत्न हमेशा उनकी सेवा में हाजिर रहते और लाखों समर्पित स्त्रियों के वे स्वामी थे। ऐसी पाँचों इन्द्रियों के अनुकूल सामग्रियों का उपभोग करने के बावजूद प्रभु को कभी राग का आंशिक स्पर्श भी नहीं हुआ, उत्कृष्ट भोगों के बीच भी प्रभु का वैराग्य अत्यंत प्रबल था । वे हजारों राजाओं के अधिपति थे, करोड़ों का सैन्य उनकी सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहता था । मनुष्य तो ठीक देव भी उनके दास थे। उनके रूप, लावण्य, शरीर की विशेषता आदि का तो क्या कहना, मान का नशा हो जाये वैसी सभी सामग्री होने के बावजूद प्रभु की वाणी, चाल-चलन या व्यवहार में कहीं भी गर्व का नामोनिशान नहीं दिखता था बल्कि उनका व्यवहार सर्वत्र नम्रता भरा था। प्रभु गर्भकाल से ही निर्मल मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के स्वामी थे, फिर भी उनमें कहीं भी उत्सुकता या छिछोरापन नहीं था। सभी प्रसंगों में उनकी गंभीरता झलकती थी ।