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________________ ७८ सूत्र संवेदना-५ पूजातिशय : पूज्यों की पूजा हो उसमें कोई आश्चर्य नहीं है, परन्तु पूज्य परमात्मा अष्ट महाप्रातिहार्यादि द्वारा जिस प्रकार पूजित हैं, उस प्रकार अन्य कोई पूजित नहीं है । वचनातिशय : प्रभु की देशना का प्रभाव भी अलौकिक है । शायद आज की मशीनें भाषा का अनुवाद कर सकें, परन्तु अनेक देवता, मनुष्य और तिर्यंच एक साथ खुद की भाषा में समझ सकें, वैसी ३५ गुणों से युक्त वाणी मात्र तीर्थंकर परमात्मा की ही होती है। मात्र ये चार अतिशय ही श्री अरिहंत भगवंत का संपूर्ण स्वरूप बताने में समर्थ हैं । इन चारों अतिशयों में पहले कहे गए ३४ अतिशय समा जाते हैं। कर्मक्षय से प्राप्त ३५ गुणों से विशिष्ट वाणी का समावेश वचनातिशय में होता है तो ईति-उपद्रवों से शांति का समावेश अपायापगमातिशय में होता है । वैसे ही आठ महाप्रातिहार्यों सहित देवकृत अतिशयों का समावेश पूजातिशय में होता है। इस तरह अरिहंत परमात्मा का संपूर्ण व्यक्तित्व इन चार अतिशयों में समा जाता है । प्रभु का अंतरंग गुणवैभव तो लोकोत्तर है ही, परन्तु प्रभु का बाह्य वैभव भी लोकोत्तर है। अंतरंग गुणों को देखने की जिसकी क्षमता न हो वैसे बाल जीव भगवान के इन बाह्य अतिशयों से आकर्षित होकर समवसरण में आते हैं और अमृत रस के सिंचन जैसी कर्णप्रिय प्रभु की देशना सुनते हैं। देशना सुनकर उनके मिथ्यात्वादि कर्म का आवरण हटता है और प्रभु के लोकोत्तर स्वरूप को जानकर, वे भी लोकोत्तर धर्म को प्राप्त कर आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ जाते हैं। ये चौंतीस अतिशय परमात्मा की पिंडस्थ एवं पदस्थ अवस्था के ध्यान के लिए अति उपकारक हैं । अंतरंग या बाह्य विघ्नों के नाश के इच्छुक साधक के लिए इन अतिशयों का ध्यान एक उपकारी आलंबन बन सकता है । इसीलिए यहाँ स्तवकार ने शांतिनाथ भगवान के
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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