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मार्गानुगामी प्रतिभा संपन्न सन्मार्गदर्शक प.पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजा की प्रेरणा और प्रोत्साहन तो इस कृति का मूल है। उन्होंने समय-समय पर यथार्थ पदार्थों को सरलता से प्रस्तुत कर, अनेक अमूल्य सूचन कर, लेखन में सच्चाई तथा सुगमता के बीज रोपे हैं।
सूत्रों की गहराई तक पहुँचने में सु. श्री प्रवीणभाई मोता का सहकार सदा अनुमोदनीय है तथा भाषाकीय जाँच के लिए प.पू. सा. श्री. रोहिताश्रीजी म. सा. की शिष्यरत्ना विदुषी पू. साध्वीजीश्री चंदनबालाश्रीजी म.सा. स्मरणीय हैं ।
अंत में, बहुश्रुत लोगों से एक प्रार्थना है कि पुस्तक में कहीं भी क्षति दिखें तो अवश्य ज्ञात करें । वीतराग सर्वज्ञ प्रभु की आज्ञा के विरुद्ध कुछ भी कही भी लिखा गया हो तो उसके लिए ‘मिच्छा मि दुक्कडं'।
अंतर की एक अभिलाषा है कि इन सूत्रों को केवल पढ़कर बाजू पर रखे बिना उन उन भावों को प्रतिक्रमण आदि क्रिया करते समय अनुभूति का विषय बनाकर आत्मानंद की मस्ती लूट कर परमानंद को पाने का प्रयत्न करें । यही अभिलाषा। जेठ सु. ११, २०७१ परम विदूषी प.पू.सा.श्री चन्द्राननाश्रीजी म.सा. ता. २९-५-२०१५
की शिष्या सा. प्रशमिताश्री भवानीपुर, कोलकाता
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