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लघु शांति स्तव सूत्र
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सर्वश्रेष्ठ और भगवान के सिवाय किसी के पास न हो, ऐसी संपत्ति को अतिशय कहते हैं । तीर्थंकर परमात्मा के ऐसे चौंतीस अतिशय होते हैं । वैसे तो भगवान की सभी बातें अतिशय स्वरूप ही होती हैं, फिर भी शास्त्रों के विशेष वर्णनों को ध्यान में रखकर इन चौंतीस अतिशयों का वर्णन किया गया है ।
जन्म के साथ प्रभु चार अतिशय से युक्त होते हैं । (१) मनुष्य के शरीर में मैल या पसीना न हो ऐसा कभी नहीं होता, परन्तु प्रभु का मानवीय शरीर हमेशा रोग, मैल और पसीने से रहित अति रूपसंपन्न होता है। (२) अन्य मनुष्यों के शरीर के खून और माँस लाल रंग के
और अदर्शनीय होते हैं, जब कि भगवान के खून और माँस दूध जैसे श्वेत वर्णवाले होते हैं । (३) सामान्य व्यक्ति का श्वासोच्छ्वास गरम
और दूसरों के लिए पीड़ाकारक होता है, जब कि भगवान का श्वासोच्छ्वास आकर्षित करनेवाला एवं कमल के जैसा सुगंधित होता है । (४) सामान्य मनुष्य के आहार लेने की क्रिया या मल विसर्जन की क्रिया सब देख सकते हैं, जब कि प्रभु की यह क्रिया अदृश्य होती
प्रभु का जन्म भोगप्रधान राजकुल में होने से पाँचों इन्द्रियों के अनुकूल भोग उन्हें जन्म से ही प्राप्त होते हैं, फिर भी सहज भवविरक्त प्रभु ऐसे उत्कृष्ट भोगों को कर्मक्षय का उपाय समझकर अनासक्त भाव से भुगतते हैं ।
भोगावली कर्म का नाश होने पर प्रभु संवत्सर दान देकर स्वयं दीक्षा ग्रहण करते हैं । जिस क्षण प्रभु सभी सावध योग त्याग की प्रतिज्ञा करते हैं, उसी क्षण प्रभु को चौथा मनःपर्यवज्ञान प्रकट होता है। साथ ही अनेक साधनाओं के बाद भी दूसरों के लिए दुर्लभ