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सूत्र संवेदना-५ इन्द्रियों के ऊपर विजय प्राप्त करनेवाले योगिराज भी आपको स्वामी के रूप में स्वीकार करते हैं । हे नाथ! आज मैं भी आपके चरणों में मस्तक झुकाकर पुनः पुनः नमस्कार करते हुए प्रार्थना करता हूँ कि इन विषयों के विकारों से मेरा रक्षण करें और मुझे योगमार्ग पर चलने की शक्ति दें।”
गाथा:
सकलातिशेषक-महासम्पत्ति-समन्विताय शस्याय। त्रैलोक्य-पूजिताय च नमो नमः शान्तिदेवाय ।।३।।
अन्वय:
"सकलातिशेषक-महासम्पत्ति-समन्विताय शस्याय।
त्रैलोक्य-पूजिताय च, शान्तिदेवाय नमो नमः ।।३।। गाथार्थ :
"सकल अतिशय रूप महाऋद्धि वाले, “प्रशस्त प्रशंसनीय, 'तीन लोक से पूजित शांतिनाथ भगवान् को मेरा बार-बार नमस्कार हो! विशेषार्थ :
७ सकलातिशेषक-महासम्पत्ति-समन्विताय - सकल अतिशय रूप महासंपत्ति से युक्त (ऐसे शांतिनाथ भगवान को मेरा नमस्कार हो।)
सकल अर्थात् सर्व और अतिशेषक10 अर्थात् अतिशय । इस विश्व में 10.जगतोऽप्यतिशेते तीर्थकरा एभिरित्यतिशयाः । - अभिधान चिंतामणि की स्वोपज्ञ टीका ।।
आज अतिशय शब्द प्रचलित है, जब कि शास्त्र में इसके लिए अइसेस या अतिशेष शब्द भी मिलता है। संस्कृत में 'क' स्वार्थ में लगता है, अर्थात् अतिशेषक या अतिशेष एक ही अर्थ बताते हैं।