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________________ लघु शांति स्तव सूत्र की आवश्यकता और अपेक्षा रहती है । उनको भुगतते समय श्रम का अनुभव होता है । वे मात्र मर्यादित समय तक ही आनन्दकारी होते हैं । उपभोग के वक्त भी ज्यादातर भय और दुःख की अनुभूति ही होती है और यह शृंगार आदि भाव एकांत से सुख दें, - ऐसा भी नहीं होता । शांतभाव (शांतरस) उससे बिलकुल अलग होता है । वह स्वाधीन रूप में अमर्यादित समय तक भोगा जा सकता है । उसका सेवन करते समय श्रम या खेद नहीं होता, बल्कि अन्य कार्यों में जो श्रम लगा हो, वह भी शांत भाव से दूर होता है । उसको भुगतते समय भय या दुःख की अनुभूति नहीं होती। इसी कारण यह एकांत से सुख देनेवाला अलौकिक और अद्वितीय भाव है। शांतिनाथ भगवान ऐसे शांत भाव से युक्त हैं, इसीलिए उनको शांत कहा जाता है । वे अन्य के लिए भी शांति का आश्रय बनते हैं । यहाँ प्रश्न होता है कि प्रभु ऐसे शांतभाव से युक्त कैसे रह सकते हैं ? उसके समाधान के रूप में तीसरा विशेषण दिया गया है। शान्ताशिवं - जिनके अशिव-उपद्रव शांत हो गए हैं (उन शांतिनाथ भगवान को) जैसे बाह्य उपद्रव, प्रतिकूलताओं या पीड़ाओं का कारण कर्म है, वैसे अंतरंग उपद्रव आदि का कारण कषाय हैं । ये दोनों उपद्रव जब तक शांत नहीं होते, तब तक कोई जीव शांत भाव का अनुभव नहीं कर सकता। शांतिनाथ प्रभु के कर्म और कषाय के उदय से होनेवाले सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो जाने के कारण शांतिनाथ प्रभु ने शांतभाव को प्राप्त किया है । जो स्वयं शांतभाव का अनुभव करते हैं, वे ही अन्य के लिए शांति का स्थान बनते हैं। इसलिए जो साधक शांति को पाने के लिए उनको नमस्कार करते हैं या इस स्वरूप में
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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