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________________ ६४ सूत्र संवेदना-५ उनका ध्यान करते हैं, वे उनकी कृपा से क्रमिक विकास करते हुए मोक्ष की परम शांति तक पहुँच सकते हैं । शांतभाव में रहनेवाले प्रभु का ध्यान या नमस्कार तो शांति देता ही है; परन्तु जो मात्र उनके सानिध्य में रहते हैं, उनके उपद्रव भी प्रभु के अचिन्त्य पुण्य प्रभाव से शांत हो जाते हैं और वे शांति को प्राप्त कर सकते हैं। प्रभु के ऐसे प्रभाव से ही उनका अन्वर्थक नाम 'शान्तिनाथ' पड़ा था । प्रभु जब माता के गर्भ में अवतरित हुए, तब देश में हैजे का रोग फैला हुआ था । गर्भ में रहे प्रभु का ऐसा प्रभाव था कि उनकी माता ने जैसे ही जल का छिड़काव किया, वैसे ही पूरे नगर में रोग शांत हो गया । इस तरह प्रभु को किया गया नमस्कार या उनके स्वरूप का ध्यान तो दूर, केवल प्रभु के गर्भ अवतरण मात्र से ही अनेक अशुभ उपद्रव शांत हो गए। इसीलिए प्रभु 'शांताशिव' कहलाते हैं । (शान्तिं) नमस्कृत्य - (शांतिनाथ भगवान को) नमस्कार करके। नमस्कार करना अर्थात् ऊपर बताए गए तीनों विशेषणों से विशिष्ट स्वरूपवाले शांतिनाथ भगवान में स्थित गुणों को अपने में प्रकट करने के लिए दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर उनके प्रति आदर भाव व्यक्त करना या ऐसे स्वरूपवाले शांतिनाथ भगवान को ध्येय बनाकर, ध्यान की क्रिया द्वारा उनके स्वरूप में लीन हो जाना । इसके अलावा उनके वचनानुसार जीवन जीने का प्रयत्न करना भी एक विशिष्ट नमस्कार है। अब नमस्कार करके क्या करना है, वह बताते हैं : 6. नत्वा तत्त्वतः स्वाभेदेनान्तर्भूतध्यातृध्येयभावेन प्रणिधाय - उपदेश रहस्य ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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