SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वरकनक सूत्र सूत्र परिचय: _ 'तिजयपहुत्त' सूत्र की ग्यारहवीं गाथा की संस्कृत-छाया रूप इस सूत्र में १७० जिनेश्वरों की वन्दना की गई है । इसलिए इसका दूसरा नाम 'सप्तति-शत-जिनवंदनम्' भी है । इस अवसर्पिणी में अजितनाथ भगवान के समय में भरत, ऐरवत और महाविदेह क्षेत्र में कुल मिलाकर १७० तीर्थंकर विचरते थे। इस छोटे से सूत्र में उनके शरीर के वर्ण को याद कर उनकी वंदना की गई है । इस सूत्र को दैवसिक प्रतिक्रमण में स्तवन बोलने के बाद मात्र पुरुष ही बोलते हैं और उसके बाद 'भगवानहं' आदि बोलकर मुनियों को वंदन करते हैं। तदुपरांत शांतिस्नात्रादि प्रसंगों में 'तिजयपहुत्त' में आनेवाली इस प्राकृत गाथा को आदि में ॐ तथा अंत में 'स्वाहा' पद जोड़कर बोला जाता है। इसमें वर्णित किया गया प्रभुजी का बाह्य और अभ्यन्तर स्वरूप प्रभु स्मरण के लिए उपयोगी बनता है ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy